Tuesday, April 22, 2014


परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस जी के ३० वर्ष की ज्ञान-क्रान्ति के अन्तर्गत सैकड़ों सत्संग एवं शंका-समाधान कार्यक्रम हुये। परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस जी अपने सत्संग कार्यक्रम में हर वर्ग, सम्प्रदाय वाले को शंका-समाधान के लिए खुली छूट देते थे। परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस जी का कहना था
जिस किसी भाई बन्धु को मेरे विषय में, मेरे आचरण, व्यवहार, क्रियाकलाप के विषय में कोई गलत जानकारी हो तो कोई भी पहले माईक में आकर जनता को बताये, दिल खोलकर बोले कोई रोकने वाला नहीं मिलेगा, बशर्ते सच्चाई हो। बोलने के लिए नहीं बोले, दूसरी बात मेरे कोई लेख में, प्रचार में, बुकलेट में, मेरे किसी ग्रन्थ में यदि कोई गलत तथ्य मिला हो, लगा हो, उस पर बात कर सकते हैं, सप्रमाण समाधान मिलेगा। तीसरी बात कि मेरे बोलने में, सत्संग करने में किसी को कहीं कोई गलत बात लगे तो आकर उस पर शंका-समाधान कर सकता है, दिल खोलकर बोल सकता है और चौथी बात यदि वह जानकार है, कुछ जनाना ही चाहता है, वास्तव में वह जानकारी सही दिशा की है वह भी अपनी बातें २, , १० मिनट रख सकता है। लेकिन बोलने के लिए बोलने की छूट यहाँ नहीं मिलेगी। यदि वह जनकल्याणकारी होगी तो छूट मिलेगी। जो भाई-बन्धु अपनी शंका का समाधान चाहते हैं बड़े ही खुशी-खुशी, प्रेम से आ सकते हैं। दिल खोलकर बोल सकते हैं और दिल खोलकर वार्ता करें। हमारे खिलाफ यदि आपके दिल में कुछ बोलने का भाव है तो आकर दिल खोलकर बोलिए। कोई कुछ नहीं बोल सकता। यह पण्डाल उन गुरु जी लोगों जैसा नहीं है कि गुरु जी लोग बुलाएंगे चेलाजी गर्दन में धक्का देकर भागा देंगे। हम दोनों की वार्ता में कोई शिष्य कुछ बोल नहीं सकता। हाँ, हम भी और आप भी शान्तिमय वातावरण में, थोड़ा शिष्टाचार को निभाते हुये वार्ता करेंगे तो अच्छा रहेगा। दिल खोलकर वार्ता करें जानने-जनाने के लिए। बड़प्पन के टकराव के लिए यदि वार्ता करनी है तो वे जीते मैं हारा। यदि हार-जीत के लिए टकराव करना हैं तो वे जीते मैं हारा और नहीं, जानने-जनाने के लिए वार्ता करनी है, जनमानस को सच से अवगत कराने के लिए वार्ता करनी है तो। आधे घंटे तक तो कोई बोल बोला ही नहीं है इसके सामने ! ऐसा कोई जानकार नहीं है अपना २ घण्टा ले और हमको आधा घण्टा मौका दे तो  ५-१० मिनट, पाँच छः बार और फिर वह बोलने के लायक नहीं जाय। ऐसा नहीं हो सकता। धरती पर कोई नहीं है, देवलोक में कोई नहीं है जो रह पाएगा, आधा घण्टा बोलने के बाद बोलने के लायक ! यदि सच को आगे करदीय जाय तो। यदि अहंकार लग रहा हो आप लोगों की तरफ से और सच्चाई ऐसी ही हो मेरी तरफ से कहा क्या जाय? में तो चाहता हूँ मेरा अहंकार है तो यही मुझे बता दीजिये कि इस तरह आपका अहंकार है। मैं भी सुनूंगा। आपके बताने पर मैं झगड़ा नहीं करूँगा, आप मेरे दुश्मन नहीं हैं। मैं आपसे दुश्मनी के लिए आपसे कुछ नहीं बोल रहा हूँ। मैं किसी की निंदा शिकायत आलोचना के लिए यहाँ कुछ नहीं बोल रहा हूँ। मुझे तकलीफ है यदि मैं महात्मा हूँ तो मुझे महात्मागिरी के विधान को स्वीकार करना चाहिए। जनता को सन्मार्ग, सत्पथ बताना-दिखाना चाहिए न कि धन-धर्म का दोहन-शोषण।
इस तरह से निर्भय करके, शंका-समाधान इस धरती क्या देवलोक, शिवलोक, ब्रह्म लोक तक भी कोई नहीं दे सकता। भगवद्ज्ञान रूप तत्त्वज्ञान को जानने-समझने एवं परीक्षण करने हेतु सत्संग एवं शंका-समाधान कार्यक्रम में दूर-दूर से भी विद्वान-बुद्धिमान पढ़े-लिखे और श्रद्धालु-जिज्ञासु एवं अहंकारी बन्धु भी आते थे और अपनी शंकाओं एवं प्रश्नों को रखते थे। वर्तमान इस घोर आडम्बर-ढोंग-पाखण्ड के बीच लोगों को उम्मीद तो उम्मीद है कल्पना तक नहीं थी कि ऐसे स्पष्ट एवं यथार्थ तत्त्ववेत्ता भी मिल सकता है। जो जिस प्रश्न अथवा शंका को लेकर आता था उसको उसी के हाव-भाव एवं उसके समझदारी में स्पष्ट रूप से आ जाने वाली तरीकों से जवाब अथवा जो समाधान मिलता था उससे गदगद हो जाते थे और अहंकारी लोगों का अहंकार चूर-चूर होकर धराशायी हो जाते थे जिससे देखने-सुनने वाले भी सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस जी को वर्तमान के भगवदावतार कहने लगते थे। किसी का भी पूर्णतया शंका-समाधान करके परमसत्य (परमात्मा-परमेश्वर) तक पहुँचाना केवल भगवदवतार के लिए ही सम्भव है अन्य किसी के लिए नहीं। वास्तव मे देखा जाय तो दुनिया के मान्यता प्राप्त सदग्रन्थ एक प्रकार के शंका-समाधान ही हैं। रणभूमि में अर्जुन का भ्रम दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण जी का ७०० श्लोकों वाला उपदेश ‘श्रीमद्भगवद्गीता भी शंका-समाधान ही है।

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