क्रम संख्या ५०४-५३७

५०४. जिज्ञासु:- जैसा कि आपने कहा कि भगवान् आप हैं, कलयुग के। भगवान् आप हैं जैसे कि आपने उल्लेख किया था मैं ईश्वर हूँ।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- किसने कहा?

५०५. जिज्ञासु:- अभी बात आई थी।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आप जो है पहले इस वीडियो कैमरा में बड़े बन्धु ले रहे हैं इस २९ वर्ष के रिकार्ड में कोई बता दे कि मुँह से निकलता हो कि मैं भगवान् हूँ। ज्ञानी भी नहीं कर सकता। आप लोग ऐसे झूठी बकवास क्यों करते हैं?

५०६. जिज्ञासु:- जैसे कि प्रश्नकर्ता था, उन्होने कहा था कि मुझे अपने जैसा बना लीजिये तब आपने कहा था कि भगवान् क्या भगवान् बना सकता है? इंस्पेक्टर इंस्पेक्टर को बना सकता है? मुख्यमन्त्री मुख्यमन्त्री को बना सकता है? भगवान् भगवान् को नहीं बना सकता। भगवान् वाली बात बताई थी प्रभु। तो मैं यही चाहता हूँ कि आप प्रभु के रूप में हैं हमारे सामने तो उस चीज का हमें एहसास तो हो कि आप प्रभु हैं।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ! अर्थ लगाइयेगा तो ये तो भगवान् हो ही जायेगा। जो होगा तो। ये मैं कहाँ कह रहा हूँ कि नहीं लगेगा। ये किसने सुना कि आज तक इस मुँह से कि मैं भगवान् हूँ? अर्थ में ये होगा तो होगा नहीं। तत्त्वज्ञान कोई और देता है क्या? लेकिन अब रही चीजें कि मैं भगवान् हूँ किसी से मैंने कहा ही नहीं। इसलिए आप कहे हैं कि भगवान् जी हैं। इसलिए मेरे को झलक दिखाई........क्या हमको गर्ज पड़ेगा आपको अपनाने का? तो झलक दिखा दूँगा। मुझे गर्ज ही क्या है? आपको गर्ज हो तो समर्पित-शरणागत करके ज्ञान लीजिये। परमेश्वर का विराट झलक देखिए। विराट देखिए वही गीता वाला अध्याय १३ का ९, १० श्लोक आप लोगों के लिये है। पूरा कर दीजिये। ११, १२, १३ वाँ श्लोक मेरे लिये है। मैं पूरा करा दे रहा हूँ विराट दर्शन है उसमें। अध्याय १३ का श्लोक ९, १० आप लोगों के लिये है। आप लोग पूरा कर दीजिये। उसमें ११, १२, १३ सद्गुरु के लिये है, तत्त्वदर्शी सत्पुरुष के लिये है वो हमसे पूरा करा लीजिये। आप गीता का अध्याय ४ का श्लोक ३४ का पहला पंक्ति पूरा कर दीजिये। दूसरी पंक्ति से ३५, ३६, ३७, ३८, ३९ हमसे पूरा करा लीजिये। लेकिन जब तक अध्याय ४ का ३४ का पहले पंक्ति पूरा नहीं करेंगे यानी उसके बाद से अध्याय १३ का ९, १० पूरा नहीं करेंगे, मैं ११, १२, १३ आपके सामने कैसे प्रकट कर दूँगा?

५०७. जिज्ञासु:- वो बात ठीक है प्रभु। लेकिन उसके लिये क्या करना होगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- जब ठीक है तो लेकिन कैसा और लेकिन तो ठीक कैसा? जब ठीक है तो लेकिन कैसा और लेकिन है तो ठीक कैसा? नहीं, जब लेकिन है तो ठीक कैसा और ठीक ही है तो लेकिन कैसा?

५०८. जिज्ञासु:- ठीक है प्रभु आपके शब्दों का बात अच्छी है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- वैसे शब्द का ही तो हमारे पास भण्डार है और क्या है?

५०९. जिज्ञासु:- लेकिन मैं चाहता हूँ मैं श्रद्धा-विश्वास, आस्था, ज्ञान वो चीजें मैं कैसे प्राप्त करूँ? वो भक्ति, वो ज्ञान उसको हम कैसे प्राप्त करें ताकि वो सद्गुरु भगवान् को प्राप्त कर सकें।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- इतनी उन्मुक्तता आपके पास है तो आप जाँच करें। जो तत्त्वदर्शी आपको आभाषित हो उसके यहाँ ऐसे करें। जब आभास है तो समर्पण-शरणागत में परेशानी क्यों? आभास नहीं है तभी तो चिंतन है। आभास नहीं है तभी तो चिंतन है। आभास हो तो परेशानी कुछ नहीं। नहीं, नहीं, चिंतन दूर करने के लिये मैं बैठा हूँ। यही तो सत्संग कर रहा हूँ। लग रहा है आप नया आए हैं। तीन का सत्संग गँवा दिया। अब अगला सत्संग सुनिये।

५१०. जिज्ञासु:- मुझे आज ही पता चला कि आप यहाँ हैं।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अरे भइया ! तब तक आज ही पता चला। मान लीजिये इक्जामिशन के समय आये प्रिंसिपल के पास कि हमको इम्तिहान में बैठा लीजिये। वो कहेगा कि एडमिशन लिये ही नहीं थे, पढ़े ही नहीं थे इम्तिहान में कैसे बैठेंगे? तो मुझे अभी पता चला है कि इम्तिहान होने जा रहा है। तो भाई ! अब तो क्या पछताये होत है जब चिड़िया चुक गई खेत। अब अगला कोई सत्संग खोजिये। माघ मेला में इलाहाबाद में होने जा रहा है कहीं भी रहिएगा। बैशाखी में हरिद्वार में होगा।

५११. जिज्ञासु:- अभी वो आपका साक्षात्कार वाला समय बचा है न?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आप पढ़े-लिखे हैं।

५१२. जिज्ञासु:- हाँ, असिस्टेंट प्रोफेसर हूँ पी॰जी॰ गवर्नमेंट कालेज में।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आप प्रोफेसर हैं इतना जाने होंगे बगैर थ्योरी के प्रक्टिकल नहीं होता है। आप जो हैं इसको बताएँगे कि बगैर थ्योरी का प्रक्टिकल होता है? बिना थ्योरी का प्रक्टिकल होता है?

५१३. जिज्ञासु:- नहीं होता है मैं मान रहा हूँ आपकी बात।

सन्त ज्ञानेश्वर जी :- हम पूछ रहे हैं। इसको हाँ, नहीं कीजिये न। थ्योरी जरूरी है न प्रक्टिकल के लिए। थ्योरी का क्लास निकल गया। प्रक्टिकल कैसे करेंगे। नहीं, नहीं, देखिए।
हम लोग गोरखपुर की एक सच घटना बता रहा हूँ। सच्चा घटित घटना है। हम लोग गोरखपुर में सी॰ टी॰ में थे, यानी उस समय लॉ कालेज नहीं बना था। अब लॉ कालेज बन गया है। हम 73 की बात बता रहे हैं। गोरखपुर यूनिवर्सिटी में हम लोग लॉ कालेज में लॉ में थर्ड ईयर में थे। नाईट क्लास चलता था। शाम को हम लोग क्लास लेने गए थे। उसी जो मजिस्टिया ब्लॉक है गोरखपुर यूनिवर्सिटी में, तो बहुत लंबा ब्लॉक है, बहुत बड़ा। यहाँ से वो जो अगली बिल्डिंग दिखाई दे रही है उधर। शायद इससे भी लम्बा होगा छोटा नहीं होगा। उसी में पूरब तरफ लॉ कालेज चलता था। लॉ क्लासेस और पश्चिम तरफ साइन्स क्लासेस चलता था। साइन्स का लेबरेट्री, उसी समय जो साइन्स के टॉपर विद्यार्थी शोध के होते हैं। उनके लिए समय का कोई क्लास नहीं होता है। उनके दिमाग में जब भी कोई नया विषय प्रक्टिकल का आता है, तो वो जो प्रोफेसर हेड होता है, उनको वो उसी समय लेबरेट्री में जाकर उसी समय प्रयोग कराता है। वह टॉपर छात्र था। टॉपर स्टूडेंट था शोध का साइन्स का। उसके दिमाग में कुछ आया। वो गया अपने हेड के पास, प्रोफेसर के पास, कहा कि सर में ऐसा प्रयोग करना चाहता हूँ। वो कहा कि लेबरेट्री की चावी दे दिये। एक दोस्त भी था साथ में, कहे कि खोलना अमुख-अमुख केमिकल लेकर के रखना, कुछ करना मत। मैं अभी आ रहा हूँ, कुछ करना मत। अब जो है वो लड़का वहाँ से आया लैब खोला। लेबरेट्री और उसका कुछ सामान लाया। अपने दोस्त को भेज दिया कि जाओ और कुछ समनवा लाओ दूसरे कमरे से। अभी शीशी में लेकर के जकिंक करना शुरू कर दिया। जकिंक किया विस्फोट हो गया। विस्फोट हो गया। तो उस समय इतना तेज विस्फोट हुआ कि उतना दूर पर विस्फोट हुआ हम लोग पूरब वाले लास्ट कमरे में क्लास कर रहे थे। लगा कि बिल्डिंग उड़ गया। गैलरी एक ही थी हम लोग निकल कर देख रहे हैं मार धुआँ से वो भरा हुआ है। दौड़ कर गए लोग कहे कि नहीं। ये साइन्स की लेबोरेट्री है, इधर कोई नहीं जाएगा। तुरन्त लेक्चरार साहब पहुँच गए। नहीं। कोई नहीं जाएगा उधर, वो साइन्स का लेबोरेट्री है।  

५१४. जिज्ञासु:- आपके कथनों से तो मैं बहुत सन्तुष्ट हुआ। ढूँढा सब जहाँ में पाया पता तेरा नहीं, जब पता तेरा लगा तो अब पता मेरा नहीं। अब इससे ज्यादा मैं क्या कह सकता हूँ ?

सन्त ज्ञानेश्वर जी :- अभी पता लगा ही नहीं है मेरा, पता तो तब लगेगा जब 17, 18 को पात्रता परीक्षण से गुजरोगे उसमें पास हो जाओगे तब 20 तारीख को पता लगेगा। 19 को तो संसार का पता लगेगा, परिवार संसार क्या है ये जानने देखने को मिलेगा। 20 को पता चलेगा कि मेरा अपना क्या है? अभी कहाँ पता चला? अभी तो 20 आगे है। 

५१५. जिज्ञासु:- परन्तु संकेत को ऐसे होते हैं कि हमको पता चल गया है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आभास कहना चाहिए आभास कहा जाय उसको। पता न कहा जाय। आभास ये संदेहास्पद होता है।

५१६. जिज्ञासु:- ऐसा नहीं है। अब मुनि भा भरोस हनुमंता। मुझे पूर्ण विश्वास पूर्ण आशा है कि आने वाली 22 तारीख को प्रथम मैं ही हूँ। ये आप कहिए लेकिन मैं नहीं कह सकता।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अभी 17, 18 आगे है। मेरा व्यक्तिगत न किसी से लगाव है और न द्वेष। यहाँ न कोई मेरा शत्रु है न मित्र है। मेरा यहाँ न कोई अपना है न कोई पराया है। जो सत्य के अनुरूप होने-रहने-चलने के संकल्प में है वो मेरा अपना है। जिसको अभी झूठा संसार चाहिए, पैसा-परिवार चाहिए भइया वो अपना अपना है। मेरा तो एक ही सम्बन्ध है भक्त-सेवक का। वही भक्त-सेवक का एक रिश्ता-नाता है। वो ज्ञान, ध्यान, ज्ञान से जुड़ेगा। तो भक्त-सेवक कोई भक्ति-सेवा अपनाएगा कि नहीं अपनाएगा ये मेरे को 17, 18 न बताएगा, पात्रता परीक्षण के बाद और पता नहीं अपनी धुन में बने रहना चाहेंगे कि परमेश्वर का हो-रहकर चलना चाहेंगे? बस एक मनमाना एक दीवार है बीच में। बड़ा खतरनाक दीवार है ये, शैतानी दीवार है ये। और यही एक परमेश्वर नहीं चाहेगा। मनमाना छोड़ दे परमेश्वर का सारा श्रेष्ठ, सर्वोच्चता सामने है। मनमाना छोड़ दे तो किसी भी प्रकार की कमी का कोई स्थान न रहे। सारे दुख-परेशानियाँ तो इस मन के चलते हैं। शैतानी प्रतिनिधि जो मन है ये उसके चलते हैं। तो मनमाना आप अपना छोड़ेंगे या आप भी मनमाने साधू महात्मा बने रहेंगे, भक्त-सेवक बने रहेंगे, साधू का पोशाक आडंबरी-ढोंगी की तरह से पहने रहेंगे या सही बनेंगे। ये भइया तो आप पर ही है। अभी तो मैं कुछ नहीं कह सकता। ये तो निर्णय 18 की शाम को है। 22 तारीख परमेश्वर की प्राप्ति का दिन है। विराट दर्शन का दिन है। वहाँ तक पहुँचने के लिए समर्पण-शरणागत एक अनिवार्य कड़ी है। विहायतामानसर्वांग सर्वान् यत् पूर्ण चरित निस्तयः । ये पहली पंक्ति वाला होने के लिए निर्मल निहंकारः तो निर्मल और निरहंकार दो जब आप बनोगे तब स शान्ति मदि गच्छति तब वह परमप्रभु परमेश्वर को प्राप्त करने का पात्र बनेगा। मम और अहं रखते हुये, अहं और मम रखते हुये कोई परमेश्वर का लाभ नहीं पा सकता। तो अभी आप में मम और अहं, अहं और मम है कि नहीं, मैं और मेरा है कि नहीं, ये तो 18 तारीख बताएगा न, आप मान लीजिए आदि आप संकल्पित हैं आपको परमेश्वर चाहिए। तो 18 तारीख तो नहीं कह सकता हूँ लेकिन परमेश्वर ऐसा होने-रहने वालों को मिलता है आपको भी मिल सकता है। 18 तारीख को नहीं कह सकता।

५१७. जिज्ञासु:- बोलिए सदानन्द जी महाराज की जय sss

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- लेकिन 18 वाला बनिये। जब निर्मल निरहंकार देख लूँगा फिर।

५१८. जिज्ञासु:- आप तो अंतर्यामी हैं, आप सब कुछ...

सन्त ज्ञानेश्वर जी :- अभी तो सदानन्द शरीर मशीन बैठा है। अंतर्यामी तो भगवान होता है न।

५१९. जिज्ञासु:- हम तो आपको वही मान रहे हैं।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- ये तो आप मान रहे हैं न?

५२०. जिज्ञासु:- अभी जानना बाकी है । अब आप जनाएंगे........

सन्त ज्ञानेश्वर जी :- जना रहा हूँ, दिखाना 22 को होगा। जना तो रहा ही हूँ, आभास तो कुछ हो ही रहा होगा?

५२१. जिज्ञासु :- ऐसा न होता तो आपके पास ये जीव.....

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बड़ी खुशियाली परमेश्वर का जीव, परमेश्वर के पास आवे क्या परमेश्वर को खुशियाली नहीं होगी? होगी ही। परमात्मा की जीवात्मा परमेश्वर के शरण में आवे, रहे-चले क्या ये परमेश्वर की खुशियाली नहीं होगी। एक सांसारिक झूठा पिता, एक सांसारिक झूठा पिता बिल्कुल विनाशी पिता, झूठा पिता, झूठा पिता, जीव भक्षी माता-पिता भी अपने पुत्र से प्यार करते हैं। ये विनाशी जीव भक्षी माता-पिता अपने पुत्र से जब प्यार करते हैं, तो अविनाशी अमरपुरुष परमेश्वर अपने अविनाशी पुत्र जीवात्मा को नहीं प्यार करेगा? ये तो सोचने की बात है ही नहीं। जो किसान इतना दयालू है जो घास-कूट, कांस-कूट को खाद पानी दे रहा है तो क्या ये मान लिया जाय कि अपने धान-गेंहूँ, जौ-चना को खाद-पानी नहीं देगा? वो धान-गेंहूँ-जौ-चना को खाद-पानी नहीं देगा? अरे घास-कूस को जब दे रहा है तो गेंहूँ-जौ, धान-गेहूँ, जौ-चना को देगा ही देगा। जब कांट-कूंसको खाना-पानी दे रहा है तो अपने सेव-संतरा, आम-अमरूद, सेव-संतरा-अनार के पौधों को खाद-पानी नहीं देगा? देगा ही देगा। तो भगवान् की जीवात्मा भगवान् के शरण में आवे खुशियाली न हो, ऐसा कैसे होगा। जब आप ईमान से, संयम के साथ भगवान् के शरण में आयेंगे, भगवान् कैसे नकार देगा, ये तो उसका लक्षण ही नहीं है। अपने शरणागत को त्यागना, भगवान् का लक्षण ही नहीं है। राम ने कहा था--------
कोटि बिप्र बध लागहि जाहू। आए शरण तजे नहिं ताहू।।
तो कैसे त्यागा जा सकता है शरण में आने वाले को? नहिं छोड़ा जा सकता।

५२२. जिज्ञासु:- बोलिए परमप्रभु सदानन्द भगवान् की जय sss। बोलिए सदानन्द भगवान् की जय sss

नारायण जी:- मैं श्रीमान् गुप्ता साहब जी से निवेदन करूँगा कि वो अपने मन की जो भी शंकायेँ हो वो पहले हमारी आपकी बैठक में होती रही हैं, वो आए और अपनी शंका-समाधान करें और श्री मिश्रा जी से भी निवेदन करता हूँ कि वो भी अपनी जो भी शंकायेँ उनके अन्दर हों अच्छा स्वर्णिम अवसर मिला है आप अपनी शंका-समाधान कीजिये।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- मात्र दो ही मूर्ति का नाम क्यों ले रहे हैं? तीसरे नंबर पर सबको कह दीजिये जो भी व्यक्ति हैं।

नारायण जी:- जो भी व्यक्ति हैं जिनके अन्दर जो भी शंका-समाधान का उद्देश्य हो, जो भी उपज रहा हो, उनको खुली छूट है। आइये अपना शंका-समाधान कीजिये। जो नहिं आए आज भी उनको लाने के लिए सभी से निवेदन है कि प्रेरित कीजिये और अपने मन-मन का मन में जो स्थितियाँ गलत बैठी है उनकी शंका-समाधान लीजिए।
बोलिए सदानन्द भगवान् की जय sss

५२३. जिज्ञासु:- भगवान् तुम्हारी शरण में आयी हूँ। मेरा बालक न घर से नहीं निकलता, न घर में रोज बैठा। छाती कूट-कूट कर कहता है मर जाऊँगा, मर जाऊँगा। घर में रहता है छाती कूट-कूट कर कहता है घर में मर जाऊँगा।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अरे सूचना दिलवा दो कि मर जाना है तो मेरे यहाँ अपने को कर दे। वो तर जाएगा। पहले कहीं होकर भाग कर गया है तो कह दो कि जब मर ही जाना है तो मेरे यहाँ आकर कट जाए। यहाँ आकर कट जाएगा तो वो सीधे उसका जीव तर जाएगा।

५२४. जिज्ञासु:- महाराज जी घर में बैठा है। दो महीने हो गया।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- क्या कर रहा है?

५२५. जिज्ञासु:- क्रोध कर रहा है, छाती कूटता है। कहता है मर जाऊँगा, मर जाऊँगा।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- कहता है मर जाऊँगा तो जैसा अपना है उसको भी बुलाकर सत्संग में बैठा दो और उसको मेरे यहाँ सुपुर्द कर दो। नहीं मरने दूँगा।

५२६. जिज्ञासु:- मेरे को मृत्यु हो जाए पर बच्चे को नहीं हो।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अच्छा। ये बोल रही हो। जब आने लगेगा न तो बच्चा को ठेंगा दिखा देगी। ठीक है छोड़ो उसको बुला लाओ सत्संग में।

५२७. जिज्ञासु:- नहीं आता, कहता है नहीं जाता।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- तो भगवान् उनके यहाँ उनके पीछे-पीछे घूमता रहेगा क्या? नहीं आता है तो झेलो। या तो बुला लो नहीं तो झेल लो।

५२८. जिज्ञासु:- घर से नहीं जाता महाराज जी। हे भगवान्...........

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बस किसी तरह से बुला लाओ। बैठा दो आगे। एक दिन बैठा दो, दूसरे दिन से आने लगेगा। एक दिन कुछ भी कह-सुन करके लाकर बैठा दो।

५२९. जिज्ञासु:- तुम्हारी कृपा हो जाय तो आ जाए।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अब कृपा कोई वस्तु होगी जो दिया जाए। प्रयास करो, परिणाम भगवान् पर छोड़ दो। प्रयास करो, परिणाम भगवान् पर छोड़ दो। प्रयत्न करो लाने के लिए लेकिन अभी सुधर जाएगा न तो आप ही झगड़ा करोगे, उठा लाने का सोचोगी। मर जाना मंजूर हो जाएगा, भगवान् के यहाँ रहना-चलना मंजूर नहीं होता है। क्योंकि जीवभक्षी तो माता-पिता है ही हैं। मर जाए। आया था एक बार आगरा आश्रम में। कहे बाप था। कहे कि मेरे सामने कुआँ में डूब कर मर जा। मैं देखकर खुशी-खुशी चला जाऊँगा लेकिन भगवान् जी के यहाँ मत रह। बाप था अपना। बाप था अपना। मर कुयें में गिरकर के मैं देखूंगा, खुशी-खुशी चला जाऊँगा। मर जा यमराज के यहाँ जा लेकिन भगवान् के यहाँ मत जा। ऐसे-ऐसे जीवभक्षी पिता हैं, ऐसे-ऐसे जीवभक्षी........। आप ही यहाँ आने लगेगा न, तो आप ही घसीट कर के ले जाना चाहोगी कि चल-चल मर जा लेकिन भगवान् के यहाँ मत जा। एलर्जी है न भगवान् से। भगवान् से संसार वालों को भरपूर एलर्जी होता है। बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। परमप्रभु परमेश्वर की जय sss
आज तक कोनो बताने नहीं आया कि आखिर भगवान् में गलती क्या है? भगवान् में दोष-अपराध क्या है कि उसका होने-रहने-चलने में लोगों को एलर्जी है, परेशानी है। बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। आप बैठो और कोई उपाय नहीं है। आप प्रयत्न करो उसको लाने के लिए। आयेगा और हमसे मिलने के लिए बात करो उससे। वो बोलेगा चलने लगेगा।

५३०. जिज्ञासु:- महाराज जी मेरा एक शंका है जैसे सती जी को शंका हो गई थी, रामचन्द्रजी के बारे में तो सती जी परीक्षा लेने चल देती है तो शंकर भगवान् एक चौपाई बोलते हैं, होइहें जो राम रचि राखा। तो ये कार्यक्रम चल रहा है शंका-समाधान का जैसे लोग यहाँ आकर शंका-समाधान करते हैं। क्या इसमें भी दोष होगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। अहंकार और दुर्भावना के बीच यदि वो हो रहा होगा तो इसमें भी वही होगा। यदि जिज्ञासा श्रद्धा के साथ हो रहा होगा तब तो दोष रहित है। लेकिन किसी दुर्भावना के अन्तर्गत हो रहा होगा तो इस समय भी हश्र वही होगा।

५३१. जिज्ञासु:- एक बात मैं और जानना चाहता हूँ। मृत्यु का रहस्य क्या है? मृत्यु क्या है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- मृत्यु जीव का अज्ञात समय में, अज्ञात अवस्था में, प्रताड़ित करते हुये घसीटकर यमदूतों द्वारा ले जाया जाने वाला जीव का शरीर से सदा के लिए घसीट कर चला जाने वाले स्थिती का नाम है।

५३२. जिज्ञासु:- मन तो शैतान का प्रतिनिधी है तो अगर आप मन करता है तो आत्मा को दोषी क्यों ठहराया जाता है इसको।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आत्मा कहाँ दोषी होता है। आत्मा तो निर्विकार है, निर्लेप है।

५३३. जिज्ञासु:- जैसे नरक..............

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- जीव कहिए आत्मा नहीं।

५३४. जिज्ञासु:- तो जीव को नरक में जाना.......

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- जीव है बलशाली जीव चाहेगा तो मन को मनमाना नहीं होने देगा। जीव अपने बुद्धि के अनुसार कर दे। शरीर तो जीव का है न, अहं का है न। तो ये हम नहीं चाहेगा तो मन क्या कर लेगा? हम चाहेगा सही रहना-करना-चलना तो मन क्या कर लेगा? हम जो है भोग के तरफ, व्यसन के तरफ न झुके तो मन क्या कर लेगा।

५३५. जिज्ञासु:- तो इसमें जीव का भी दोष है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- जीव ही दोषी है पूरा। मन को हावी होने दे रहा है तन पर। अपने अनुसार क्यों नहीं ले चल रहा है? यानी सही रास्ते पर क्यों नहीं चल रहा है। मनमाना क्यों हो रहा है जो सही रास्ता-विधान है उस पर क्यों नहीं रह-चल रहा है। जो सही मार्ग है उसको क्यों नहीं अपना रहा है?

५३६. जिज्ञासु:- बोलिए परमपिता परमेश्वर की जय sss

५३७. जिज्ञासु:- यहाँ अच्छा प्रयास किया आयोजकों ने उनको भी प्रणाम करता हूँ। जिनकी इस महान् प्रयासों से आज जो दुर्भाव है मिटेंगे, अवश्य मिटेंगे। मैं प्रार्थना निवेदित करूँ.............
शुभ मंगलम् भव मंगलम् तव आगमन शुभ मंगलम्
निश्छल अनंत अनन्त रूपं तेरे सत्यज्ञान समाहितम्।
श्री सदानन्द............................
शुभ मंगलम् भव मंगलम् तव आगमन शुभ मंगलम्।।
आप लोगों के साथ अपने दिल की भावना को आपके श्री चरणों में व्यक्त करना चाहता हूँ। यहाँ उपस्थित तमाम पिता तुल्य वृद्धजनों को पूज्य मातृ शक्तियाँ को नमन करते हुये मैं निवेदन करना चाहता हूँ श्री चरणों में अपने मन की भाव। जिस प्रकार सतयुग में एकमेव एक थे अर्थात फिर त्रेता में एकमेव एक अवतार द्वापर में भी एकमेव एक अवतार हमारे कलियुग में भी एकमेव एक अवतार ये सुनकर मैं श्रीचरणों पर उपस्थित हुआ हूँ भगवान् जी जो जिस प्रकार से सतयुग में एक अवतार ने पूरे युग का परिवर्तन किया था। धर्म संस्थापनार्थ द्वापर में भी उसी प्रकार, त्रेतायुग में भी भी हुये, हमारे इस कलयुग में भी होगी। ये तो ऐसा है ही। भगवान् जी आज के आपके मुखारविंद निकले हुये वचनों ने मुझे जो खींच लिया कि आप समझ रहे हैं। वास्तव में आप क्या समझ रहे हैं कि व्यक्ति कि विपदा और व्यथा का। भगवान् जी जैसा कि भगवान् कि युग में हुआ अनन्त देव उनका शिष्य था। एक व्यक्ति को बुद्ध का बहुत ज्ञान बताया लेकिन वो समझ नहीं पाया। तो उसने सुनना पसन्द नहीं किया तो अनन्त देव उसे बुद्ध के सामने ले आए। तो कहा कि भगवान् ये आपका महान् ज्ञान तो सुनना ही नहीं चाहता। भगवान् बुद्ध की दृष्टि उसके चेहरे पर पड़ी। उन्होने आदेश दिया कि भोजन भण्डारी को कहा कि इनको भोजन दिया जाए। तो फिर ये आनंद दायक वचन और ये भोजन तभी तो ये सुनने योग्य बनेगा।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- भाव-भाव में जो हैं प्रस्तुत किए हैं। वैसे मैं एक बात कहूँ इस सलीमनाबाद क्षेत्र को कितना-कितना-कितना धन्यवाद देना चाहिए। इस लड़के चंदू का प्रयास मेहनत। 22 को साक्षात् विराट परमेश्वर का दर्शन होगा तो क्या उसे सृष्टि का यह धरती ब्रह्माण्डिय रिकार्ड में नहीं आएगा? एक अपने आप सोचने का है। जहाँ परमेश्वर १५ वाँ दिन परमेश्वर वाला कार्यक्रम चल रहा हो, सच्चाई है भगवत् कृपा से तो जहाँ परमेश्वर महीनों दिन ठहर रहा हो, धरती के उस क्षेत्र का महत्ता-गुणवत्ता कौन वर्णन कर सकता है ब्रह्माण्ड में? तो ये दोनों लोग इस क्षेत्र के कितने बड़े धन्यवाद के पात्र हैं। ये क्षेत्र का जितना भी धन्यवाद देगा थोड़ा ही रहेगा। रही बात केवल यहाँ ज्ञान देने नहीं आया हूँ। ज्ञान तो एक परिचय-पहचान है। केवल दर्शन करने नहीं आया हूँ दर्शन तो एक परिचय-पहचान है। ऐसे लोग जो अभावग्रस्त हैं जो विपदाग्रस्त हैं, जो कमी, अभाव में आत्महत्यायें कर रहे हैं आप लोग सूचना पहुँचा दीजिये। उन सभी लोगों के लिए जहाँ-जहाँ आश्रम है वहाँ आश्रमों में उनके लिए बिल्कुल जगह है। बिल्कुल जगह है। और ईमान-संयम के साथ सारी व्यवस्थायें उनको मिलेंगी जो उस शरीर को चाहिए। थोड़ा दूर पड़ेगा आश्रम बाराबंकी में है, आगरा में है, हरिद्वार में है जगह-जगह जो है आश्रम है। यदि ऐसा परिस्थिति आया इस क्षेत्र में भी कोई आश्रम स्थापना की बात आई तो ऐसे किसी भी भूखा-दूखा परिवार के लिए मेरा भी सिद्धान्त यही है पहले रोटी दिया जाय फिर भजन गवाया जाए। पहले रोटी दिया जाय फिर भजन कराया जाय। मैं भी इस पक्ष का हूँ कि भूखे भजन न होइ गोपाला, और यह लो अपनी कंठी माला। मैं भी इस पक्ष का हूँ भजन गवाना है तो पहले एक रोटी खिलाया जाए। भजन कराना है, भक्ति करानी है तो पहले उसे कुछ आहार उस शरीर को इस लायक बनाया जाए जिससे वो भजन-भक्ति-सेवा कर सके। इसलिए भगवान् जो है केवल ज्ञान परिचय-पहचान कि लिए नहीं, बल्कि ऐसे किसी भी अनाथ परिवार को शरण पर लेने के लिए भी यहाँ है।आप लोग सूचना दे दीजिये कोई अनाथ हो जिसका कोई सहारा न हो, उसके पूरे परिवारों के लिए यहाँ के आश्रमों में पूरा स्थान है। वो अपने घर-परिवार के तरह से रह सकता है। पूरा स्थान है, अपने घर-परिवार के तरह से आश्रमों में पूरे परिवार जिन्दगी गुजार सकता है। उसको तड़पने की जरूरत नहीं है, उसको भूखा रहने की जरूरत नहीं है। तब तक तो जहाँ आश्रम है वही जाने को कहूँगा जब तक कि इस क्षेत्र में ऐसी कोई आश्रम की स्थापना नहीं हो पाती है। इस क्षेत्र में जब आश्रम की स्थापना होगी तो जितने भूखा-दूखा अनाथ परिवार होंगे सबको यहाँ शरण मिलेगा, भीख किसी से नहीं मँगवाऊँगा, दान-चन्दा किसी से नहीं वसूलूंगा, व्यवस्था सब दूँगा। शेष सब भगवत् कृपा।

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