क्रम संख्या ३७२-४०९

३७२. जिज्ञासु:- परसो के दिन हमने पूछा था कि विष्णु भगवान् जी ने गरुण जी और नारद को दिया था तत्त्वज्ञान। आपने कहा था कि नारद जी का तत्त्वज्ञान चला गया था बाद में। नारद जी का तत्त्वज्ञान किसलिये चला गया था क्योंकि नारद जी घर-परिवार गये नहीं थे वापस?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलो परमप्रभु परमेश्वर की जय। नारद जी केवल एक देवता ही नहीं है भगवान् के पाँच प्रतिनिधियों में से एक प्रतिनिधि भी है। नारद जो को वह क्षमता शक्ति प्रदान है जो भी सृष्टि में असुरी शक्ति तप कर रहा होगा उसको भी जनाना, सचेत करना समझाना, दैवी वृति में जो ताप कर रहा है उसको भी जनाना-समझाना। भगवान् से जो मिलना चाहता है उसको भी जनाना समझाना। नारद एक ऐसा नाम है, जो किसी दुश्मन नहीं, देवता लोग को तो महत्व देते ही थे, भगवान् भी भाव प्यार देता ही था। इतना ही नहीं असुर राक्षस भी नारद को महत्व देते थे। कोई असुर राक्षस नारद का विरोध नहीं करता था। जलन्धर सभी देवी-देवता ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर को जलन्धर जेल में बन्द कर दिया सबको बन्द कर दिया जेल में। वह भी नारद को बन्द नहीं किया था। अपना गुरु कहकर के बाहर रख लिया था, सारे देवी-देवता लोग को जेल में डाल दिया था जलन्धर, लेकिन नारद को नहीं और वह नारद ही जो हैं सबको बाहर करने का उपाय किए थे। महासती वृन्दा जो है अपने तप का दुरुपयोग किया और उस वर ताप को उसने अपने असुर राक्षस पति रक्षा में प्रयोग कर लिया। जबकि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। असुर राक्षस की रक्षा के लिए अपने तप के फल को नहीं लगाना चाहिए था। भगवान् ने तो उसको हार का वर दिया था तेरा हाथ तेरा सुहाग जब तक तेरा हार खिला रहेगा। तेरा हार खिला रहेगा, सती होने का सत जो है। इस हार का माध्यम से दिया जा रहा है, जिस दिन तेरा सत भंग हुआ हार मुर्झा जायेगा और हार वाला नष्ट हो जायेगा। इसलिए इस हार को अब अपने पास रखना ताकि तेरे सत की रक्षा हो सके। हार हरेगा सत ठहर नहीं सकेगा। इसने उस हार को युद्ध में जलन्धर थकने लगा हारने लगा, को हार पहना दिया। हार के लिए था कि जब तक हार खिला रहेगा जलन्धर का कुछ नहीं बिगड़ेगा। हार जब तक खिला रहेगा जब तक महासती वृन्दा का सत बना रहेगा। वृन्दा का महासती का सत बिगड़ेगा हार मुर्झायेगा और वो मारा जायेगा। बैठक हुआ शंकर जी और सब लोग तो जेल में ही थे, बैठक हुआ। नारद जी को कहा गया कम से कम विष्णु जी को निकालो बाहर। कुछ काम आगे बड़े। कह सुनकर के शंकर बाबा वगैरह नारद को कह सुनकर विष्णु को बाहर निकलवा दिये। फिर तो प्लान हुआ, प्लान में जो सत भंग किया गया, हुआ। सतभंग हुआ जलन्धर मारा गया और प्रक्रियायें गाथायें बहुत बड़ी है तो कुल मिलाकर करके नारद एक सृष्टि के महानिरीक्षक हैं। जब वो भगवान् विष्णु के समय में श्रीमन् नारायण-नारायण-नारायण गाते थे। जब राम जी आ गये श्रीराम श्रीराम श्रीराम करने लगे। जब भगवान् कृष्ण जी आ गये, हरे गोविन्द हरे गोविन्द मुरारी, हरे मुरारी गाने लगे। का समझे। देखिए एक बात है कोई भी जब माया के तरफ ताकता है तो ज्ञान लुप्त हो जाता है। माया के तरफ आकर्षण जब होता है तो ज्ञान लुप्त हो जाता है। नारद भी भगवान् विष्णु को कुछ कहे बिना बाकी थोड़ी न रहे। जब राजा शीलनिधि के कन्या का हाथ देखे। इसका जो पति होगा वो अमर पुरुष होगा इसका पति जो होगा सृष्टि का संचालक होगा। इससे उनको अर्थ समझना चाहिए था, इसका पति भगवान् होगा। अब उसका पति बनने का ललक उनको आ गया। ज्ञान लुप्त हो गया-ज्ञान लुप्त हो गया।

३७३. जिज्ञासु:- महाराज जी शरणागत हो धर्म के लिए करते थे तब ये सब असुरों को, महात्माओं को सबको मानते थे । तो ऐसे शरणागत भक्त का ज्ञान चला गया, शरणागत भक्त............

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सवाल है कि आप रोजे शरणागत होंगे और कहीं कामिनी-कांचन की तरफ आकर्षित होंगे तो ज्ञान बना रहेगा क्या? भगवान् आपको अपराध करने की छूट देगा क्या? एस॰पी॰ साहब पूरा जिला का संचालन खूब बढ़िया करते रहे। एक दिन किसी को दोस्त बनाकर किसी को हथियार दे दे। डी॰ आई॰ जी॰ जेल केवल एक अपराधी के सम्पर्क के नाम पर डी॰ आई॰ जी॰ साहब जेल गये। डी॰ आई॰ जी॰ जेल विभाग के डी॰ आई॰ जी॰ साहब एक अपराधी को थोड़ा सहूलियत दे दिये तो डी॰ आई॰ जी॰ साहब जेल में चले गये। अभी कुछ दिन पहले, कुछ महीना पहले, तो डी॰ आई॰ जी॰ साहब इसलिए थोड़े बनाये गये हैं कि अपराधी की सहायता करें। डी॰ आई॰ जी॰ साहब इसलिए डी॰ आई॰ जी॰ बनाये गये कि अपराधी पर भी शासन करे अपने अधीनस्थों पर भी शासन करके अपराधियों को सुविधाओं से वंचित रखें कुल मिलाकर नारद बाबा के भगवान सत्य प्रधान और न्याय प्रधान है उसके यहाँ किसी को किसी प्रकार का अपराध की छूट नहीं है, कोई भी माया के तरफ आकर्षण एक अपराध है।

३७४. जिज्ञासु:- फिर मीरा बाई शरणागत भक्त थी तो मीराबाई को तत्त्वज्ञान मिला होगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- नहीं उस समय नहीं मिला। देखिए दो प्रकार के विभाग है मान लीजिए भगवान् भू-मण्डल पर यदि हैं उस समय तो समर्पित शरणागत भक्त-सेवक को तत्त्वज्ञान मिल जायेगा, अमरता मिल जायेगा लेकिन जिस समय भगवान् भू-मण्डल पर नहीं है और उस समय कोई भक्त चाहे वो महिला हो पुरुष हो, अपने कर्तव्य का पालन कर दिया समर्पित शरणागत होकरके तब वो जन्म मृत्यु में नहीं जायेंगे और सीधे ब्रह्मलोक, शिवलोक में रिजर्व कर लिए जायेंगे। जहाँ शांति आनन्द है, वहाँ भी जन्म-मृत्यु नहीं है, अगले बार जब अवतार होगा तो माया प्रकृति उसको ऐसा आकृति, रूप देगी मानव का, किसी जीव जन्तु का जहाँ जो भगवान् को स्वीकार हो जाय। भगवान् पाने का कर्तव्य पूराकर लिया, भगवान् वाला कर्तव्य रह गया है कि उसको शरण में स्वीकार करना लेकिन उस समय अवतार था नहीं कि तत्त्वज्ञान दे। इसलिए मीरा का जीवात्मा सुरक्षित हो गई ब्रह्मलोक, शिवलोक में अवतार हुआ है प्रकृति पुनः मीरा को लायी है और भगवान् के शरण में डाल डी है भगवान् उसको स्वीकार कर लिया है मीरा तो वर्तमान में है ही। भगवान् के शरण में।

३७५. जिज्ञासु:-  एक प्रश्न और है जैसे राष्ट्रपति है प्रधानमंत्री है कर्मचारी नेता लोग, मंत्री लोग सब है और यदि हमें कोई कहे कि राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री नहीं मिले हैं अभी तो यह बात सुनकर आश्चर्य होता है अभी राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री मिले नहीं है और कोई गाँव का आदमी मिल सकता है। तो यह बात सुनकर आश्चर्य होता है कि परमतत्त्वम्, भगवत्तत्त्वम् से ब्रह्मा जी, शंकर जी नहीं मिले हैं लेकिन वो तो विष्णु जी जानते हैं। विष्णु जी का दर्शन भी किये हैं साक्षात् दर्शन किये हैं। वो नहीं मिले हैं तो फिर............

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अब भैया थोड़ा सा प्रश्न जो है, विष्णु जी भगवान् नहीं है, ये कल भी कहे थे आप लोगों से। विष्णु जी भगवान् नहीं है, भगवान् वाले हैं। रामजी भगवान् नहीं हैं, भगवान् वाले हैं। कृष्णजी भगवान् वाले हैं। कोई भी शरीर आकृति जो है भगवान् किसी शरीर आकृति का नाम नहीं है। भगवान् वह परमतत्त्वम् है वो आत्मतत्त्वम् है वो भगवत्तत्त्वम् है, अद्वैत्तत्तवम् है जिससे इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति होती है, जो ब्रह्माण्ड को संचालित कर रहा है। अन्ततः जिसमें ब्रह्माण्ड समाहित होता है। ये उत्पत्ति वाली शक्ति, ये स्थिति वाली शक्ति, ये लय-प्रलय वाली शक्ति तीनों शक्तियाँ जिससे उत्पन्न होती है। जिसमें स्थित रहती है वो भगवान् कहलाता है। वो परमात्मा परमेश्वर है। भगवान् किसी आकृति शरीर का नाम नहीं। विष्णुजी भगवान् नहीं थे, विष्णुजी भगवान् वाला थे विष्णुजी से शंकर जो तो मिलते ही रहते थे। भगवान् से मिलने की बात है कि वो नहीं जानते थे ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर भगवान् को नहीं जानते थे। विष्णु जी तो मिलते रहते थे।

३७६. जिज्ञासु:- ब्रह्मा, शंकर उस परमतत्त्वम् को न जान पाये तो दोष हो गई होगी कोई भूल हो गई होगी।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- ये भइया एक बात और सही है। जब श्रीमद्भगवत् महापुराण का श्लोक ऐसा ही कह रहा। जब रामचरित मानस की चौपाइयाँ ऐसी ही कह रही है। जब गीता का श्लोक ऐसा ही कह रहा है फिर इसमें आगे जाकर हम क्या कहेंगे।

३७७. जिज्ञासु:- फिर कौन दोष हुआ था उनसे कौन सी भूल हो गई उनसे?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- ये माया के प्रतिनिधि हैं, प्रत्यक्ष रूप से। परोक्ष रूप से भगवान् के प्रतिनिधि हैं। प्रत्यक्ष रूप से, ये लोग माया का कार्यकर्ता हैं, भगवान् के नहीं। परोक्ष रूप से भगवान् के हैं।

३७८. जिज्ञासु:- एक और प्रश्न है। नारद जी का ज्ञान जब चला गया तो ऐसे यदि शरणागत भक्त होकर तत्त्वज्ञान को पा लिया और फिर उसने वचन दिया है कि शरणागत होऊँगा। तत्त्वज्ञान पाऊँगा और तत्त्वज्ञान पा लिया पर फिर माया के ओर चला गया। उसकी गति क्या होगी? तब वो कहाँ पर जायेगा। स्वर्ग या नर्क जायेगा? कहाँ जायेगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय। जो भगवान् के शरण में था, दिया है। यदि किसी परिस्थिति वश माया के तरफ आकर्षित ही हो जाता जाता है। तो ज्ञान छीन तो जायेगा लेकिन वो नाश नहीं होने पायेगा। उसको उस माया को हटाकर के पुनः भगवान् का ही बनने रहने दिया जायेगा। नारद कहीं जा करके गृहस्थ पारिवारिक नहीं बना, सब भंग होने के बावजूद भी, आकर्षण होने के बावजूद भी नारद भगवान् का था, है, रहने वाला है।

३७९. जिज्ञासु:- जो लोग माया में चले गये उनका शरीर छूट गया?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- जो लोग भगवान् पाने के बाद, तत्त्वज्ञान पाने के बाद घर-परिवार में बैठे हैं। उस पापी-कुकर्मी को ऐसे सजा मिलनी है। आगे भगवान् पाने का विधान खत्म हो जायेगा। तो फिर जल्दी भगवान् पाने के लायक भी नहीं रह जायेंगे। तड़पते रहेंगे करोड़ों-करोड़ों बार नारकीय यातनाओं में।

३८०. जिज्ञासु:- मरने के बाद जो स्वर्ग भी नहीं जा पायेंगे?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- उनका कैसा कल्याण? वो तो माया के अधीन हो गया, वो तो अपराधी हो गया। वो तो असुर राक्षस हो गया। भगवान् को अवहेलना करके भोग-कामिनी-कांचन को स्वीकार कर लिया। वो तो घोर घृणित अपराधी है। उसका सजा अज्ञानी से असंख्य गुना होगी। उसको दण्ड अज्ञानी से असंख्य गुना मिलेगा। वो तो जान देखकर के भगवान् से मनमाना रह रहा है, Free रह रहा है। उस शैतान को भय भी नहीं लग रहा भगवान् का। उसकी जो दुर्गति होगी किसी पापी कुकर्मी की नहीं होगी।

३८१. जिज्ञासु:- परमप्रभु परमेश्वर की जय। बोलिये सद्गुरु देव महाराज की जय। हम दो चार साल पहले भी आये थे सत्संग शंका-समाधान द्वारा सुन रहे थे, उसमें आप गंजेड़ी-भगेंडी को ललकार रहे थे।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आज भी ललकारता हूँ गंजेड़ी-भगेंडी को ये मतिभ्रष्ट भक्ति में लीन रहना चाहिये, उनको मस्त रहना चाहिये। ये नसेड़ी सब साधू का पोशाक पहनकर गांजा सूंघते हैं। मतिभ्रष्ट लोग गांजा पीने के लिये शंकर जी को गजेंडी घोषित कर दिये कि शंकर जी भी गांजा-भांग पीते थे। ये लोग देखने गये थे कि शंकर जी गांजा भांग पीते थे। ये गंजेड़ी-भंगेड़ी मतिभ्रष्ट लोग। साधू का बहाना बना करके साधू को भी कलंकित करते हैं आज भी कह रहा हूँ।

३८२. जिज्ञासु:- हमें इस बात से बहुत खुशी है इस बारे में हम भी अपना विचार सुनायें लेकिन कई शास्त्रों और कई धर्मों में हमने पढ़ा है कि निषेध है लेकिन ऐसा शास्त्र जो धर्मग्रन्थ है जिसमें इसका निषेध है कि नहीं पीना चाहिये।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- कहाँ धर्म कहता है कि तुम गांजा पीओ, तुम शराब पीओ, तुम भांग खाओ? कहाँ धर्म कहता है कि भांग खाओ, गांजा पीओ? कहाँ धर्म कहता है?

३८३. जिज्ञासु:- मैं ये नहीं कहता कि गांजा-भांग पीने के लिये लिखा नहीं है। लेकिन रोक के लिये कहीं लिखा है नहीं रोक हो इसका पीना निषेध है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- ये तो मैं बोल ही रहा हूँ कि पीना निषेध है। शास्त्र ग्रन्थ में है कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिये। हर ग्रन्थ में कि कोई भी धार्मिक है तो उसे वह कार्य नहीं करना चाहिये, जो नहीं करने योग्य हो। एक सहज सिद्धांत है कि शरीर में हमको ऐसा कुछ नहीं डालना चाहिये जो शरीर को हानि पहुंचावें। ये तो सीधा-साधा बात है। हमको शरीर को स्वच्छ आक्सीजन, स्वच्छ वातावरण में रखना है। जहरीला धुआँ बीड़ी सिगरेट जहरीला धुआँ, ये जहरीला धुआँ, ये गांजा-सिगार ये जहरीला पदार्थ भांग-धतूरा ये खा-खा के नशा में चित्त हो रहे हैं लोग। ये मतिभष्ट लोग मस्त कहला रहे हैं। अरे ! मस्त तो भक्ति में होना है। इतने भक्ति में लीन हो जाय, दीवाना हो जाय कि मीराबाई जैसे बन जाये। एक राज-परिवार की महाराणा सांगा की पुत्र-वधू जो रानी साहिबा के तरफ से रहन-सहन को लात मार दिया, ठोकर खा लिये रविदास के यहाँ जा करके। अब कैसे संतों में जाकर के पगघुंघरू बांध मीरा नाची रे, लोग कहे मीरा हो गई बावरी। सास कह कुल नाशिनी।। ऐसे ही मीरा को क्या लगा मेरा तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। संतन बीच बैठ-बैठ लोक लाज खोई, संतन बीच बैठ-बैठ लोक लाज खोई, अंसुअन जल सींच-सींच प्रेम बेल बोई। अंसुअन जल सींच-सींच प्रेम बेल बोई, अब तो बेल फैल गई, का करिहैं कोई। मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई। ऐसे दीवानगी भगवान् में जब हो जाय वो मस्ती है, जहर खा लिया, भांग खा लिया, गांजा पी लिया, मति भ्रष्ट कह रहे हैं। मैं साधू हूँ, मैं फकीर हूँ, मैं फक्कड़ हूँ। कहाँ पढ़ा है धर्म में ये स्वीकार है। कहाँ धर्म में इसको मान्यता है?

३८४. जिज्ञासु:- कल परसों हम श्रीभगवद् महापुराण पढ़ रहे थे, लहसुन प्याज खाने में निषेध है, लिखा हुआ है, ऐसे तम्बाकू के बारे में निषेध लिखा हुआ है। आप के नजर में कहीं आया है तो?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सवाल ये है कि लहसुन प्याज ऐसा चीज है थोड़ा दुर्गन्ध से युक्त है। सामान्य समाज में फैला हुआ है। गांजा-भांग तो इतना बड़ा जहर है। इतनी बड़ी विकृति है कि सामान्य रूप में निषेध तो है ही। यह मत खाओ-पियो नशा है। भोजन जहरीला है, जहर को जहर कहने की जरूरत, भोजन बासी है तो जहर कह देंगे। जहर तो जहर है ही उसको क्या जहरीला कहना है। गांजा-भांग वाले सब नसेड़ी जो हैं नसेड़ी कहीं भक्त-सेवक साधू कहला सकते हैं। अरे ! गजेंडी यार किसके, दम लगाये खिसके। ये गजेंडी किसी के होते हैं जहाँ दम मिल जायेगा, उसी के हो जायेंगे। दम मार लेंगे तब उससे भी खिसक लेंगे। ये गजेंडी किसी के हो सकते हैं? अपने के तो नहीं है तो भगवान् के कहाँ होंगे। गजेंडी यार तभी तक है, जब तक दम नहीं चढ़ा है। इसलिये कहा गया है गजेंडी यार किसके, किसी के नहीं, क्यों भाई दम मारे खिसके। दम मारे लिये खिसक गये। वही हाल है इन नसेड़ियों का। ये नसेड़ी है कि भक्त-सेवक है, साधू हैं।

३८५. जिज्ञासु:- जैसे नारद जी का वचन है राम चरित मानस में। सुरसरि जल वारूनि जाना। सन्त इसका पालन नहीं करते चाहे गंगा जल से बना हो। शराब के लिये रोककर दिया। वैसा नारद जी उनको शराब के बारे में लिखा हुआ है। ऐसे इस भांग नशा के बारे में है किसी सन्त का कहा हुआ।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सवाल ये है हमारा विषय जो है, ध्यान-ज्ञान मानव जीवन का जान रहे हैं, देख रहे हैं कि गांजा-भांग खाद्य नहीं, हम जान-देख रहे हैं, हम बोल रहे हैं। हम लोग बोल रहे हैं यह भी ग्रन्थ ही है। भगवान् कृष्ण जो बोले थे वही गीता है बल्कि व्यास ने कुछ अपनी ओर से भी घुसेड़ है। जो बोल रहे हैं वह धर्म ही है। हम कह रहे की नसेड़ी लोग अपने को साधू न समझे, ये नसेड़ी लोग अपने को साधू न समझे, अपने को बदमाश समझे क्योंकि नशा कोई धर्म में एलाऊ (स्वीकार) नहीं है। नशा कोई धर्म में स्वीकृत नहीं है। ये नसेड़ी लोग धर्म में घुस-घुस करके नशाखोरी करके जो धर्म को कलंकित किए हैं। इसकी दुर्गति इनको झेलनी पड़ेगी।

३८६. जिज्ञासु:- मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि आपका विचार गलत है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- हम ये कह रहे हैं कि कहीं है कि नहीं है। इससे मुझे मतलब नहीं है। मैं कह रहा हूँ कि ये गलत है।

३८७. जिज्ञासु:- सत्यमेव जयते।

३८८. जिज्ञासु:- श्री विष्णु जी महाराज की जय। श्रीराम चन्द्रजी महाराज की जय।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- श्रीकृष्ण चन्द्र महाराज की जय क्यों नहीं बोले। प्रेम से बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय।

३८९. जिज्ञासु:- अभी आप सत्संग के दौरान बोले हैं कि जो ज्ञान भगवान् विष्णु ने नारद जो को दिया है, शंकर जी को मिला है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- शंकर जी को ज्ञान नहीं मिला है। गरुण को मिला है।

३९०. जिज्ञासु:- राम भगवान् है जो तुलसी जी के राम हैं। इस राम में और जो भगवान् विष्णु ने गरुण को ज्ञान दिया था, तुलसी वाले ज्ञान में और गरुण वाले ज्ञान में क्या अन्तर क्या है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- तुलसी वाला ज्ञान भावनात्मक था इसमें कुछ तथ्य नहीं है। विष्णु जी ने जो गरुण को दिया था, भगवान् राम ने जो लक्ष्मण, हनुमान को, सेवरी को दिया था, भगवान् कृष्ण ने जो उद्धव, अर्जुन, मैत्रेय को दिया था, वह ज्ञान तथ्य पर था, असली था और तुलसी का ज्ञान, मीरा का ज्ञान, मुहम्मद साहब का ज्ञान आदि आदि सन्त-महात्मा भक्त लोगों का जो ज्ञान है, ये ज्ञान भावनात्मक है। उस समय भगवान् का अवतार था नहीं। भगवान् के सिवा कोई ज्ञान देता नहीं है। तत्त्वज्ञान भगवान् ही दे सकता है। ब्रह्माण्ड में दूसरा कोई नहीं दे सकता।

३९१. जिज्ञासु:- क्या राम भगवान् नहीं थे।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- रामजी भगवान् वाले थे ही तभी तो भगवान् राम कह रहा हूँ, विष्णुजी भगवान् वाले थे ही। तभी तो भगवान् विष्णु कह रहा हूँ। कृष्ण भगवान् वाले थे तभी भगवान् कृष्ण कह रहा हूँ। भगवान् कोई शरीर नहीं होता है। भगवान् शरीरधारी होता है, अवतार बेला में।

३९२. जिज्ञासु:- मगर जो ज्ञान प्रधान ऋषि को भी ज्ञान दिये, महाराज श्री दशरथ जो को जो दिये थे।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- देखिये भगवान् को बार-बार भू-मण्डल पर आना पड़ता है। ये जो मनु शतरूपा के जब पुत्र के रूप में भगवान् को स्वीकार किए, तब भगवान् जी एक रूप होता है सदा-सर्वदा। रोज माता-पिता बदलेगा नहीं, ठीक है स्वीकार कर लिया कि मनु-शतरूपा माता-पिता रहेंगे तब अब भगवान् के हर दम माता-पिता वही रहेंगे। मनु शतरूपा ही जो है, दशरथ और कौशिल्या थे। वह मनु शतरूपा यही वासुदेव देवकी थे। जब भी अवतार होगा, भगवान् का तब भी माता-पिता मनु-शतरूपा, दशरथ-कौशिल्या, वासुदेव-देवकी ही वाला रहेंगे। इसलिए वो तत्त्वज्ञान नहीं दिये। देवलोक में स्थित रहने वाला दिये। ज्ञान तो भगवान् सेवरी को दिये थे। 


३९३. जिज्ञासु:- मतंग ऋषि ने सेवरी को ज्ञान दिया था।


सन्त ज्ञानेश्वर जी:- मतंग ऋषि ने सेवरी को ज्ञान नहीं दिये थे, राम से मिलने का विधान बताये थे। ज्ञान तो सेवरी को भगवान् राम ने दिया था।

३९४. जिज्ञासु:- राम भगवान् थे कि भगवान् वाला थे।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- राम जी भगवान् नहीं थे, भगवान् वाला थे।

३९५. जिज्ञासु:- तो ये भगवान् विष्णु के अवतार थे?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- भगवान् विष्णु  बार-बार नहीं आयेंगे, नहीं जायेंगे। विष्णु जी वाला जो भगवान् थे, वही त्रेता में आये तो राम जी कहाये। वही राम जी वाला भगवान् जी थे, वही द्वापर में कृष्ण जी कहाये। विष्णु जी राम जी नहीं बने, राम जी कृष्ण जी नहीं बने। भगवान् जो था, वो एक है। वो समय-समय पर आता है वही भगवान् एक ही है। इसलिये विष्णु, राम, कृष्ण भी एक ही है। एस॰पी॰ साहब इलाहाबाद के एस॰पी॰ साहब जो कोई व्यक्ति होंगे अब वो अगला एस॰पी॰, पिछला एस॰पी॰ नहीं रहेंगे। लेकिन एस॰पी॰ कहा जायेगा। वो सब लोग एस॰पी॰ ही है। एस॰पी॰साहब पूरे जिला के हैं, वो पिछले कोई और होंगे अगला कोई और होंगे वर्तमान में कोई और होंगे। एस॰पी॰ साहब तीनों लोग थे, हैं, होने वाला हैं लेकिन तीनों जो लोग थे एक नहीं थे।

३९६. जिज्ञासु:- मनु-शतरूपा जब तपस्या किये थे। ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों देवता बारी-बारी से आये थे वरदान देने मगर उन्होने वरदान न लेकर के उन्होने जो है परमपिता परमेश्वर राम जी से जो है वरदान माँगा था, अब राम रूप में जो है हमारा अगला जन्म होगा तो आप हमारे पुत्र के रूप में जन्में?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- एक बात कहूँ वह अभी आपके समझ में नहीं आयेगा। राम रूप में नहीं आये थे। जब आप योग-अध्यात्म से गुजरेंगे जब आप शरीर से हम जीव से हंस जीवात्मा होंगे। आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म स्तर पर जब जायेंगे तब वो प्रकरण आपके पकड़ में आयेगा। इसके पहले नहीं आयेगा। न मैं खोज पाऊँगा। राम थे ही नहीं उस समय, उस समय राम थे ही नहीं, राम त्रेता युग में आये थे। ये प्रकरण सतयुग का है, पहले का है।

३९७. जिज्ञासु:- जैसे शंकर भगवान् के बारात में जो है.........

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- शंकर तो भगवान् है ही नहीं शंकर, भगवान् के एक कार्यकर्ता हैं।

३९८. जिज्ञासु:- जब उनकी (शंकर) शादी हुई थी। गणेश भगवान् की पुजा हुई थी जब गणेश भगवान् के पुत्र थे तो उनकी पुजा कैसे हो गई। मतलब गणेश जी भी सनातन हैं। गणेश भगवान् शंकर जी के शादी से पहले.......

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- भइया पहले भगवान् शब्द को जानिए, न गणेश भगवान् है, न शंकर भगवान्। संसार में भगवान उसका नाम है जो सारे ब्रह्माण्डों का मालिक होता है। भगवान् ये देवी-देवता लोग भगवान् नहीं है। ये उनके कार्यकर्ता हैं। वो भी सीधे नहीं प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष रूप में। ये देवी-देवता लोग भगवान् नहीं है भगवान् तो परमसत्ता-शक्ति का नाम है। वो जिस शरीर से आता है, उसको भगवान् की उपाधि मिलती है। जैसे विष्णुजी, रामजी, और कृष्णजी। इन तीन नाम सिवाय भगवान् की उपाधि जिसके साथ भी सटा हो। वो झूठा और गलत है। शंकर जी भगवान् थे ही नहीं हंस थे शिव-शक्ति वाला थे। भगवान् परमतत्त्वम् वाला है। परमतत्त्वम् का पुत्र है। सोsहँस-हँस और हँस वाला थे शंकर जी।

३९९. जिज्ञासु:- जो रामायण में कहे हैं तुलसी दास जी, मेरे में और शंकर जी में कोई अन्तर नहीं है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- ये तुलसी दास के दोनों स्थिति। कहाँ कहा है कि कोई अन्तर नहीं है। मंगल भवन अमंगल हारी, उमा सहित जेहि जपत पुरारी। यानी कब मंगल-अमंगल में बदलेगा जिसका जाप उमा शंकर सहित पुजारी जपते थे उसका जाप किया जाय, शंकर जी जिसका जाप करते थे। उसका जाप करने को कहा गया है।

४००. जिज्ञासु:- लंका काण्ड में भी कहा है कि........

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- लिंग थापित विधिवत् करे पूजा...........

४०१. जिज्ञासु:- जो हमारे में और शंकर जी में भेद करेगा वह कल्प भर नरक में जायेगा।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- वास्तव में सही है जो हमको कोई मान्यता दे हमारे शरणागत भक्त-सेवक को महत्व न दे वो हमारा कैसा। शंकर जी से बढ़कर अपना कोई होगा क्या राम जी का? जरा सा सती, सीता जी का रूप धारण कर ली तो शंकर जी ने सीधे संकल्प कर लिया। शिव संकल्प किन मनमाही, यह तन सती भेंट अब नाही। यानी माँ स्वीकार कर लिया, फिर पत्नी नहीं, फिर पत्नी के रूप में नहीं देखा तो इतनी ऊँची मान्यता जिसके अंदर राम जी के प्रति हैं, रामजी का उससे अधिक प्यारा और कौन होगा। ऐसे शंकर जी को ना स्वीकार करके केवल रामजी को स्वीकार करे तो शंकर जी उसको अपना कहेंगे। किसी पिता को स्वीकार किया जाय, उसके बेटे को दुत्कार दिया जाय। पिता खुश हो जायेगा? शंकर जी का जो हंस रूप था रामजी वाले परमतत्त्वम् रूप का पुत्र था, हंस था।

४०२. जिज्ञासु:- वही जो आप कह रहे हैं, झूठ है वही तो मैं कह रहा हूँ भक्त क्या होता है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आप पहले भइया ज्ञान से गुजरो शंकर जी का रहस्य जानों। क्या थे? कैसा थे? राम जी का रहस्य जानो क्या थे? कैसा थे? फिर हमको नहीं बताना पड़ेगा कि शंकर जी क्या थे? आप खुद ही देख लोगे राम जी क्या थे और फिर अपने आप निर्णय हो जायेगा। ज्ञान का कोई रुपया पैसा फीस तो नहीं लग रहा है। लेकिन भगवान् का भगवान् को अर्पित करना पड़ेगा। शरीर तो शरणागत करना होगा भगवान् के प्रति। ज्ञान ले लीजिए देख लीजिये, कहना-सुनना क्या है, पूछना क्या है। ज्ञान में साक्षात् देखना है।

४०३. जिज्ञासु:- तो ज्ञान कैसे मिलेगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- भगवत् शरणागत होने पर मिलेगा। सत्संग सुनिए जो शंकाये होगी समाधान लीजिये, आ करके पात्रता परीक्षण में शामिल होइये। आपकी श्रद्धा शरणागत भाव देखा जायेगा। फिर पास हो जायेंगे, सब दर्शन हो जायेगा।

४०४. जिज्ञासु:- कितने दिन में इलाहाबाद में संस्था है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सत्संग कार्यक्रम हो रहा कि नहीं हो रहा है।

४०५. जिज्ञासु:- यहाँ तो हो रहा है कितने दिन हो गये। ज्ञान कितने दिन में मिल जायेगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- लाखों जनम में नहीं मिलेगा। श्रद्धा-शरणागत भाव होगा तो आपको शायद दो तीन तारीख से पहले ही मिल जायेगा। अगला तीन तारीख तक आने से पहले मिल जायेगा। श्रद्धा नहीं होगी, समर्पण शरणागत नहीं होगी, तो लाखों करोड़ों जनम में भी नहीं मिलेगा। इसलिए अभी बांड नहीं भरा जायेगा। जब पात्रता परीक्षण से गुजरेंगे तब बात पता चलेगा, कब तक मिलेगा।

४०६. जिज्ञासु:- जो पुराणों में महिमा कही गई है, शंकर भगवान् का?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- भइया ! आप पहले भगवान् का अर्थ जानों भइया। शंकर जी का है अर्थ जानो, ब्रह्मा जी का अर्थ जानो पुराण में ही, ग्रन्थ में ही, हम भी ग्रन्थ पुराण का बात कर रहे हैं। श्री मद्भागवद् महापुराण का जो अंतिम परिणाम है। एक श्लोक है------

तमहमजमनन्तमात्मतत्त्वम् जगदुदयस्थिति संयमात्मशक्तिम्
द्युपतिभिरजशक्रशंकराधैर्दुरवसितस्त्वम्च्युतं नतोsस्मि ॥ 12/12/66

यानी आप देखेंगे स्कन्ध 12 का अध्याय 12 वाँ श्लोक 66 कल परसों तक इसको लिखा जायेगा। उसको लिखवाया जायेगा यानी 12/12/66 बारहवे स्कन्ध का बारहवे अध्याय के श्लोक 66 भगवद् महापुराण पर अज माने ब्रह्मा, शक्र माने शंकर देव जी ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, लोकपाल आदि जिसकी स्तुति करना लेशमात्र नहीं जानते। मिलना दर्शन करना तो दूर रहा, जिसकी स्तुति करना लेश मात्र नहीं जानते उस एक रस सच्चिदानन्द परमात्मा को नमस्कार है। ये श्रीमद्भगवद् पुराण से ही बोल रहा हूँ।

४०७. जिज्ञासु:- शिवपुराण में दूसरा लिखा है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- शिवपुराण भागवत महापुराण का एक अंश है। शेष सभी पुराण जो है भागवत् महापुराण के अंश है। अंतिम महापुराण जो मान्यता प्राप्त है वो भागवत् महापुराण है। ये भगवान् से सम्बंधित है। वो शिव जी से सम्बंधित है, गणेश पुराण गणेश जी से सम्बंधित है। बराह पुराण वराह से सम्बंधित है। लेकिन भागवद् महापुराण भगवान् जी से सम्बंधित है। भगवान् वाला निर्णय भागवत् महापुराण से होगा। यहाँ पर शंकर भगवान् जी वाला नारा स्वीकार नहीं किया जा रहा है। महादेव जी कहते तो ठीक था। महेश कहते तो ठीक था लेकिन भगवान् कह रहे हैं इसलिए स्वीकार नहीं हो रहा है।

४०८. जिज्ञासु:- महाराज जी आपके अनुयायी लोग कहते हैं कि मेरे महाराज जी भगवान् का अवतार हैं। आप तो अवतारी पुरुष और भगवान् के भक्तों में अष्ट सिद्धियाँ भी रहती है और अंतर्यामी हैं तो ये आप जान सकते हैं कि कौन पापी है और कौन अन्यायी हैं तो पापी को आप विनाश खुद कर सकते हैं। सुदर्शन चक्र छोड़ सकते हैं, यदि किसी तरह नहीं मानता तो। पापी का विनाश आपको करना चाहिये तुरन्त। देर ही अंधेर का कारण है, इसीलिए पाप बढ़ते जा रहे हैं। जो पापी है उनकी छंटनी कर दीजिये।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिए परम प्रभु परमेश्वर की जय। भगवान् के अवतार रामजी भी थे लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया। जब समय पर चलते रहे बीच में जो पड़ते रहे, हिसाब-किताब करते रहे। भगवान् के अवतार भगवान कृष्ण रहे। उनके साथ आगे-पीछे छः महीना पाँच महीना जन्मने वाले सारे लड़के मार-काट दिये गये। भगवान् कृष्ण ने किसी की रक्षा तक नहीं की। जब मार-काट करने वाले जब उनके पल्ले आये तो उनका हिसाब-किताब कर दिये। भगवान् भी एक बहाना खोजता है। मारल राम लगावल हिल्ला। भगवान् मारेगा लेकिन कोई हिल्ला लगाकर। ये अपराधी, पापी, कुकर्मी लोग जब भगवान् चल रहा है तो कौनो न कौन सटने अइबे करेंगे और यहाँ से जइबे करेंगे, वो हो रहा है।

४०९. जिज्ञासु:- अभी आप बोले हैं गृहस्थ जीवन में रहते हुये अगर कुछ परमात्मा की शक्ति मिल जाती है तो उसे घोर नर्क है तो क्या रामकृष्ण परमहंस पत्नी के साथ थे तो क्या घोर अन्याय है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- रामकृष्ण परमहंस परमात्मा वाले थोड़े थे वो तो सोsहँ वाले थे रामकृष्ण वचनामृत से कहिए तो दिखला दूँ कि उनका सारा ज्ञान सोsहँ का है। एक अंशावतारी थे इसलिए उनको थोड़ा बहुत लाभ मिला। वो तो सोsहँ वाले थे, पतन विनाश वाले थे। वे सोsहँ का प्रक्रिया लागू किया थे। अंशावतारी नहीं होते तो उनका भी नाश हुआ होता, अंशावतारी भगवान् के दूत होते हैं, भेजे जाते हैं वापस ले लिये जाते हैं। कहाँ विवेकानन्द को कुछ मिला सके। विवेकानन्द छटपटाते रह गये, उनको ईश्वर झलक एक भी नहीं दिखा सके। 

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