क्रम संख्या ४२९-४६०

४२९. जिज्ञासु:- मनुष्य कष्ट क्यों पाता है उसका गहराई से सटीक उदाहरण देकर कृपया कृतार्थ करें।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अब सवाल है कि गहराई कैसे नापा जायेगा? कोई मीटर लेकर आये हैं। सटीक है कि नहीं इसको कैसे समझा जायेगा? तो प्रमाण लेकर बैठे हों तो मैं बोलूँ। गहराई को नापने का कोई यंत्र होना चाहिए। सटीक है कि नहीं इसका कोई पुष्ट प्रमाण चाहिए।

४३०. जिज्ञासु:- गीता में ऐसा वर्णन आया है जैसे हमको कोई रोग हो जाता है तो उसको हमें कष्ट होता है और कष्ट के एकोर्डिंग प्रकृति अपना कार्य करती है और कार्य करने से हम दु:खी हो जाते हैं।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। जब हम किसी सत्य विधान के प्रतिकूल हम चलेंगे तो दण्ड मिलेगा और हर दण्ड प्राणी को कष्ट देता है। जब किसी भी मान्य विधान के विरुद्ध चलना शुरू करेंगे तो नि:संदेह दण्ड मिलेगा। चाहे वो व्यक्ति दे, चाहे प्रकृति दे, चाहे परमेश्वर दे। दण्ड मिलना है जब आप विधि विरुद्ध चलेंगे तो और हर कष्ट का कारण है विधि विरुद्ध आचरण। नीति विरुद्ध आचरण-व्यवहार। वही कोई रोग, प्रकृति देती है रोग के रूप में, पुलिस देती है रोल के रूप में, डंडा होल मारकर के और जज देता है जाईल में डालकर। यमराज देता है यातनायें प्रदान करके। ये दण्ड देने का विभिन्न विधान है। जज साहब जेल में डालकर के दण्ड देते हैं। यमराज जो है अंधपान, कुटानिस्थ, कुंभीपाक् नर्क में डालकर के दण्ड देता है। भगवान् जैसा अपराध वैसा दण्ड देता है। दण्ड के कारण ही किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट-पीड़ा होता है और दण्ड मिलता है विधि-विरुद्ध, धर्म विरुद्ध नीति विरुद्ध आचरण-व्यवहार करने पर।

४३१. जिज्ञासु:- स्वामी जी इस प्रश्न को जन्म-मरण के क्रियाकलाप से समझाने की थोड़ी कृपा करें।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- इसमें जन्म-मरण भी है। यमराज का नाम आ गया जन्म-मरण हो गया। प्रकृति का नाम आ गया जन्म-मरण भी इसमें समाहित है। हम जो जबाव दिये व्यापक है। इसके बाहर कोई उपाय नहीं है। कोई चीज नहीं है। जब नर्क का नाम लिये, यमराज का नाम लिये तो जन्म-मृत्यु आ गया। अब हम यानी इंस्पेक्टर साहब का नाम लिये तो भौतिक शारीरिक अपराध कानून तोड़ने का विधान आ गया। जब जेल का नाम लिये तो भौतिक अपराध कानून तोड़ने का विधान आ गया। हम तो दोनों बता दिये। लौकिक, पारलौकिक। लौकिक स्तर पर, भौतिक स्तर पर इंस्पेक्टर जज साहब का नाम लिया। पारलौकिक स्तर पर यमराज, प्रकृति, परमेश्वर का नाम लिया। जन्म-मृत्यु से बाहर है क्या?

४३२. जिज्ञासु:- लेकिन पारलौकिक दृष्टि में शरीर तो यही रह जाता है। शरीर तो नाशवान् है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- लेकिन सूक्ष्म शरीर तो जाता है न।

४३३. जिज्ञासु:- तो हम वही जानना चाहते हैं कि सूक्ष्म शरीर का क्या कार्य है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सूक्ष्म शरीर का एकम् येव एक ही कार्य है मानव जीवन में है तो किसी तरह से वह खोज करके भगवान् को प्राप्त करे, प्राप्त करके भगवान् के शरणागत हो रहे-चले। जाहे विधि भगवान् रखे, रहे। ताकि जीव जो है अपने आप को लाखों-करोड़ों बार कि यातनाओं से, जन्म-मरण की दु:सह यातनाओं से अपनी रक्षा कर सके, उबार सके। मात्र मनुष्य योनि एक वो सूक्ष्म शरीर जीव है यही इसका कर्त्तव्य है। यही इसकी अंतिम उपलब्धि है। यदि वो फेल हो जाय कर्त्तव्य से तो जन्म-मृत्यु वाला दु:सह दु:ख-पीड़ा में जायेगा।

४३४. जिज्ञासु:- अच्छा, गीता में स्वामी में स्वामी जी ऐसा लिखा हुआ है। जैसे हमें कोई कष्ट होता है प्रकृति उसको अपने एकोर्डिंग कार्य करती है तो उससे हमें कष्ट होता है, उसी के एकोर्डिंग हम जैसे हमारा भाई है, पिता है, उसके एक लगाव बन जाता है उससे हमें एक केंडिंग बन जाती है कि हमारे हैं।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- आसक्ति, लगाव।

४३५. जिज्ञासु:- आसक्ति, तो उसी के एकोर्डिंग जिससे कष्ट होता है। उसी के एकोर्डिंग हमें बर्थ मिलती है उसको थोड़ा सा।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अब मेरे व्यापक उत्तर में ये है। आसक्ति क्यों वर्जित है, त्याज्य है? आसक्ति हमेशा विधि विरुद्ध ले जाती है आसक्ति हमेशा गलत करती है। रत्नाकर डाकू कोई पापी-अपराधी नहीं था। उस समय जंगल में खेती-बाड़ी नहीं था, उस समय जंगल में नौकरी-चाकरी नहीं था। उस समय जंगल में, वो क्या था? लोगों को मार-काट कर के गठरी छिनना। लाकर के परिवार पालना, वो तो अपना कर्त्तव्य और जिम्मेदारी समझता था। जब सप्तर्षि मिले तब उसको बताये कि पाप-कुकर्म है ऐसा क्यों करते हो? पाप-कुकर्म जब समझा कि ये जो पाप है ये तुमको अकेले भुगतना पड़ेगा यमराज के यहाँ। तेरे माता-पिता, पति –पत्नी नहीं जायेगा झेलने के लिये। काफी बातें हुई दोनों के बीच कहानी थोड़ा लम्बा है। अन्त में वो कहा कि चलो, चलो ढेर उपदेश मत झाड़ो, अपनी गठरी रखो। बहुत चतुराई करता है मैं जाऊ पूछने के लिये घर और तुम लोग यहाँ से खिसक लो। उन लोगों ने विश्वास दिलाया यानी मान्यता थी उन लोगों के विचार-भावों का, शब्दों का, तो विश्वास दिलाया यानी मान्यता थी उन लोगों के विचार-भावों का, शब्दों का, तो विश्वास दिलाये सप्तर्षि नहीं, नहीं, हम लोग भागेंगे नहीं। हम लोगों को पेड़ में बाँध दीजिये। आप अपने घर से पूछ आइये।
यानी आज के तरह से मतिभ्रष्ट, चाटुकार, पति-पत्नी उस समय नहीं थे। इतना, झूठा, लबेरा, मतिभ्रष्ट उस समय का समाज नहीं था। वो गए घर में, रत्नाकर डाकू गया घर में पूछने कि माताजी कहीं कि बेटा ये तो तेरा कर्त्तव्य है, ये तो मेरी जिम्मेदारी है पालन-पोषण करना, चाहे तू जैसे पालन-पोषण कर मैं तेरे पाप-कुकर्म की जिम्मेदार क्यों बनूँ? नकार दिया, पिता ने नकार दिया, पत्नी नकार दी, लड़के-बच्चे नकार दिये। तव सप्तर्षियों की बात सामने आई कि वाह रे वाह ! पाप-कुकर्म कर के लाऊँ मिल बांटकर के सब खायें और जाकर के पाप हम अकेले भुगतें। भागे वहाँ से रत्नाकर डाकू, आकर के सप्तर्षियों को खोला पेड़ से, गिर गया चरण में। मैं तो बड़ा पापी-कुकर्मी हूँ। मुझे पाप-कुकर्म से उबारिये आप लोग। कहे कोई बात अब सप्तर्षि उनको दीक्षा दिये। बाद में नारद बाबा आए उनको दीक्षा दिये। वही रत्नाकर डाकू आगे चलकर के क्या कहलाया? आदि कवि ब्रह्मर्षि बाल्मिकी।

४३६. जिज्ञासु:- लेकिन स्वामी जी यहाँ एक प्रश्न उठता है कि पाप कर्म है क्या?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- वही विधि विरुद्ध आचरण। नीति विरुद्ध आचरण। भौतिक स्तर पर विधि विरुद्ध दोष अपराध है और धर्म के नीति स्तर पर नीति विरुद्ध जीवन आचरण, पाप कुकर्म है।

४३७. जिज्ञासु:- अगर आप पारलौकिक दृष्टि से देखें तो उसमें तो क्वेश्चन ये भी उठता है कि वही जो हमारी पत्नी थी, कल बहन है, कल पत्नी है इस तरह का एक ट्रेडिशन चलता रहता है। हम शरीर बदलते रहते हैं और आत्मा का अपना फंक्शन है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- पहले तो आत्मा का फंक्शन ही नहीं है। ये फंक्शन सेल्फ का है सोल का नहीं है। ये फंक्शन जो है शरीर के द्वारा हो रहा है सोल का नहीं है, ये सेल्फ का है। आत्मा का नहीं है ये जीव का है। दूसरे नम्बर पर, दूसरे नम्बर पर जो है ये जो ट्रेडिशन कह रहे हैं। परम्परा कह रहे हैं, विवेक परम्परा से श्रेष्ठ होता है, ज्ञान परम्परा से श्रेष्ठ होता है। तो विवेक तभी तक कारगर थी, परम्परा ट्रेडिशन तभी तक कारगर रहेगा, तब तक आपके सामने ज्ञान नहीं आ रहा है। विवेक नहीं आ रहा है क्यों? ज्ञान जब सामने आयेगा तो दूध का दूध और पानी का पानी अलग-अलग कर देता है। यानी असत्य को असत्य और सत्य को सत्य घोषित करके स्पष्ट दिखला देता है। इसलिए परम्परा वहाँ समाप्त हो जाती है। वहाँ सत्य प्रधान हो जाता है। तो कभी भी परम्परा से ज्ञान श्रेष्ठ होता है। विवेक श्रेष्ठ होता है। परम्परा वहाँ लागू नहीं होता है, जहाँ विवेक हो, जहाँ ज्ञान हो। परम्परा वहाँ लागू होगा जहाँ अज्ञानता हो। बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss
और कोई भाई-बन्धु !

४३८. जिज्ञासु:- हम कथायें बहुत सुनते हैं। बहुत भागवत् गीता, पुराण, हरि की बातें होती है लेकिन सुनने में मिलता है, जीव क्या है? ब्रह्म क्या है? ये बात साक्षात्कार विरजानन्द ने दयानन्द सरस्वती को ज्ञान दिए। ध्रुव ने ज्ञान प्राप्त किया, साक्षात्कार प्राप्त किया कि ब्रह्म के या जीव को जान सकता है कि बोलते हैं कि शरीर तो है ये मैं-मैं है मेरा है, तेरा hai लेकिन ये जीव निकल जाता है वो क्या चीज है और वो ब्रह्म क्या चीज है जो केवल कथा सुनने पर आता है लेकिन प्रेक्टिकली नहीं समझ में आता है कि यदि हो पायेगा कि नहीं हो पायेगा? वो कौन ज्ञानी मिलेगा जो इसका साक्षात्कार करायेगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। छोड़ दीजिये जो बीत गया सो बीत गया। अब आगे छब्बीस, सत्ताइश, अट्ठाइस, उन्तीस सत्संग कार्यक्रम है। इस चार पाँच दिन बचता है इसमें भाग ले लीजिए और शरीक हो जाइये पात्रता परीक्षण में आपको पास कर दूँगा और दो तारीख को जीव दिखा दूँगा। सही होगा तो स्वीकार कर लीजियेगा गलत होगा तो फेल कर दीजियेगा जो हम है सूक्ष्म शरीर है, सूक्ष्म आकृति है। अब जीव का क्लास लम्बा होगा न, यही तो करते आ रहे हैं। सत्संग में भाग लीजिये न, ऐसे ही सुनने-जानने को मिल जायेगा। देखना चाहते हैं तो सत्संग में भाग लीजिये, शंका हो तो समाधान लीजिये। पात्रता परीक्षण में तीस और एक्तीस को उपस्थिति होइये। जब पात्रता परीक्षण में आपको एक जीव दिखाने भर के ;लिए, आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म, परमात्मा नहीं। जीव दिखाने का हम कह रहे हैं आपको पास कर लेंगे। जीव देख लीजियेगा। सही होगा सही स्वीकार कर लीजियेगा। गलत होगा गलत स्वीकार कर लीजियेगा। आज से ही आपको दो तारीख तक सभी कार्यक्रमों में भाग लेना होगा।
बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय sss

४३९. जिज्ञासु:- आपके शरण में आया हूँ और आपके द्वारा मैं जानना चाहता हूँ कि मैं कौन हूँ और कहाँ से आया हूँ और शरीर छोड़ने के बाद कहाँ जाऊँगा? ऐसा मैं जानना चाहता हूँ।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- ऐसा है इसी का ये क्लास चल रहा है। इसी की कक्षा ये शिविर में चल रहा है। पंडाल में जो सत्संग हो रहा है वो उन्ही जानकारियों के लिये है। तो पीछे सुने हैं कि नहीं सुने हैं। आगे कम से कम जो हो रहा है सुनिये, समझिए। जो गलत लगे, भ्रामक होंगे आकर के यहाँ पूछिये, जानिये। ये सुनने-सुनाने वाला कार्यक्रम उन्तीस तक चलेगा। दोनों एक्तीस को सुनिये। शंकाए हो समाधान लीजिये। आगे जो है तीस एक्तीस को है पात्रता परीक्षण होगा। उसमें शरीक होइये, जो यहाँ का विधान हो स्वीकार कीजिये। कोई एक एप्लीकेशन लिखना कि हमको ज्ञान चाहिए, हम भगवान् के अनुसार रहना-चलना चाहते हैं। भगवान् पाना चाहते हैं। भगवान् पाना चाहते हैं। ऐसा ही एक दरख्वास लिखा जाता है। क्योंकि जो भगवद् प्राप्त होता है। धरती का ही नहीं ब्रह्माण्ड का एक रिकार्ड होता है। वो धरती का ही नहीं, वो ब्रह्माण्ड का एक रिकार्ड होता है। इसलिए उसका एक रिकार्ड रखा जाता है। तो वो दर्शन वाला कार्यक्रम यदि पात्रता परीक्षण में पास होंगे और क्या पास होना है, उसमें कोई रुपया पैसा जमा नहीं करना पड़ता है। उसमें कोई रुपया पैसा नहीं जमा करना पड़ता है। फीस उस नहीं लगेगा।

४४०. जिज्ञासु:- स्वामी जी ! आपके चरणों को कोटि-कोटि धन्यवाद जो आपने अवसर दिया। हम बहुत भाग्यशाली हैं। एक शंका हमें ये होती है कि परमात्मा हमारा पिता है। हम उसके बच्चे हैं। पिता कभी नहीं सोचता हमारा बच्चा दु:खी हो। वो हर वक्त अपनी खुशी की कामना से यह सोचता है कि हमारा बच्चा सुखी रहे। हम कोई कार्य अगर करते हैं तो उसमें हमारा कुछ न कुछ उद्देश्य छिपा रहता है। अगर हम भजन करते हैं तो उद्देश्य छिपा रहता है। नौकरी करते हैं तो पैसे का उद्देश्य छिपा रहता है। परमात्मा जो हमारा दयालु है इतना बड़ा सामर्थ्यवान् है और हम सारे बच्चे यहाँ उनके दु:खी पढ़े हैं। तो उसके सृष्टि रचने का तात्पर्य क्या है? उसका उद्देश्य क्या है? वो क्या चाहता है? वो हमसे क्या उम्मीद करता है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। देखिये भारत देश कभी अंग्रेजों के गुलामी में था। उनके शासन में पराधीन था। अपनी देश के लोग मर-मर कट के आजाद कराये भारत को। स्वशासन बनाया। अपने शासन बनाया। सारे नागरिक भारतीय नागरिक हैं। एक सौ पाँच छः करोड़ जो भारत की आबादी है सभी भारतीय नागरिक हैं। सबके मालिक अब्दुल कलाम साहब। राष्ट्रपति महोदय और मन मोहन सिंह जी है। मनमोहन सिंह जी बहुत क्रूवेल मैन नहीं है। मन मोहन सिंह बहुत बड़े विद्वान, शायद दुनिया के सबसे बड़े विद्वान प्रधान मंत्रियों में है। इसका इनाम मिला है इनको। दुनिया के सबसे विद्वान प्रधानमंत्री में आपके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह है। अच्छा, अब सही चलिये इतना सीधा, इतना सपाट आदमी जो किसी से बात नहीं करता है और सोनिया इनको मिले बगैर कालिख पोतवा दे। वो तो सोनिया कर रही है। मनमोहन सिंह की जीवन में कोई कलंक नहीं रहा। लेकिन सोनिया अब कालिख पर कालिख पोतवाती जा रही है। वो पोतवा रही है ये अलग बात है उसकी। प्रधानमंत्री के लोग इसमें सोनिया गाँधी कालिख मंजूर कर रहे हैं। सभी नागरिक भारत के मनमोहन सिंह जी के हैं। प्रधानमंत्रियों के लेकिन आज जेल में लाखों लोग सड़ रहे हैं। दु:ख-कष्ट पा रहे हैं। प्रधानमंत्री जी कोई बहुत क्रूवेल मेन नहीं है। वो दुष्ट-दुर्जन कठोर आदमी नहीं हैं। सब अपराधी को बाहर निकाल देना चाहिए जेल में से। सब बन्दियों को बाहर कर देने चाहिए। लाखों बंदी जेल में सड़ रहे हैं।  ये बंदूक लेकर के करोड़ों पुलिस लगी हुई है। ये इतने कोर्ट ये जजेज हजारों हजार जजेज लगे हुये हैं। मजिस्ट्रेट लगे हुये हैं। वो व्यवस्था खतम कर देना चाहिए। भारतीय नागरिक तो हैं। प्रधानमन्त्री के नागरिक तो हैं। अपना ही देश तो है। अपना ही राज तो है। ये जेल की क्या जरूरत? सरकार जेल क्यों बनवा डाली? ये पुलिस क्यों रख दी। ये न्यायपालिका क्यों बना दिया उसने। ये मजिस्ट्रेट लोगों की क्या जरूरत रह गई? सब तो अपने लोग हैं। सब अपने नागरिक हैं। सब अपने घर परिवार के हैं। इसकी क्या जरूरत पद गई।
एक व्यवस्था। एक व्यवस्था । यह सरकार एक व्यवस्था है। कानून के अनुसार अगर चलिये। श्रम-परिश्रम करिये। शान से जीवन जीयें। मर्यादा और खुशहाली का जीवन जीयें। दोष-अपराध करेंगे नियम तोड़ेंगे तो नियम तोड़ने का मतलब दूसरे को कष्ट-पीड़ा पहुँचाना। एक व्यक्ति नियम तोड़ेगा तो दो-चार व्यक्ति को पीड़ा होगा। तो आप अपने खुशहाली के लिये दूसरे को कष्ट पीड़ा पहुंचावे। ये कानून आपको एलाउ नहीं करेगा और इस व्यवहार में देखने के लिये पुलिस प्रशासन है और आधा प्रशासन और आधा व्यवहार देखने के लिये यानी मजिस्ट्रेट साहब जी हैं और पूर्णत: आपके साथ न्याय हो, आपके साथ कानून और न्याय के लिये न्याय के लिये न्याय न करे, पुलिस प्रशासन और मजिस्ट्रेट साहब आपका न्याय न करें, इसके लिये जजेज हैं, जज साहब हैं। इसमें सभी व्यवस्था है।
जेल एक व्यवस्था है। दोषी-अपराधी सामान्य जीवन नहीं जीना चाहता। दूसरे का हक मारना चाहता है। दूसरे को पीड़ा पहुँचाता है। इसलिये समाज में रहने के लायक नहीं है। उसको जेल में रखा जाता है। उसी तरह भगवान् एस दृष्टि की रचना किया। माया को अपना सिस्टम बनाकर। माया प्रकृति को अपना सहायक बनाता है। यानी इस ईमान, सच्चाई, संयम से रहेगा, वो इसका सारा लाभ सुख-आनन्द, चिदानन्द, सच्चिदानन्द पायेगा और वो इस ईमान, संयम, सच्चाई को तोड़ेगा। उसको दण्ड मिलेगा और माया के क्षेत्र में जायेगा। नारकीय यातनाओं में तड़पेगा। उसी के लिये कष्ट-पीड़ा है तो क्या हर्ज है कि हम ईमान, संयम, सच्चाई अपना लें। भगवान् का सारा लाभ पा लें। जब बेईमान बनेंगे, भ्रष्ट बनेंगे दण्ड तो मिलेगा ही मिलेगा। थोड़ा कष्ट और मिलेगा और आप भगवान् के बनाया ऐसे सृष्टि को तो देखिये भाई ! सच्चाई यही है कि भगवान् एक सच्चिदानन्दमय, परमसत्ता-शक्ति है। हमेशा आनन्द में बने रहने वाला है। शाश्वत् आनन्द, शाश्वत् शान्ति वाला है। अपने मौज-मस्ती के लिये भगवान् यह खेल-खेलता है। सबको अपने मौज-मस्ती कर लेता है तो सिमेट कर अपने में रख लेता है। जैसे प्येयिंग कार्ड। एक डिब्बे में बन्द करके पाकिट में रखा जाता है। जब मौज मस्ती करना हो तो प्येयिंग कार्ड निकाला चार दोस्त बनाया और प्येयिंग कार्ड खेलने लगा। प्येयिंग कार्ड भी ज्ञान है। जरा प्येयिंग कार्ड लाना आप लोग शाम को। आज प्लेयिंग कार्ड पर दिखाऊंगा। उसमें भी देखिये संसार है कि नहीं। उसमें भी नागरिक हैं। उसमें भी राजा है, उसमें भी रानी है, उसमें भी गुलाम है, उसमें भी सन्त महात्मा हैं, उसमें भी भगवान् है। सब है उसमें। आज शाम को आप लोग प्लेयिंग कार्ड ला देंगे। याद रखियेगा आप लोग प्लेयिंग कार्ड मंगा लेना। प्लेयिंग कार्ड आप लोग मंगा लेना किसी से। दुकान से मंगा लेना प्लेयिंग कार्ड। शाम को चलेगा क्लास प्लेयिंग कार्ड का। जरा हम भी समझा देंगे। गेम के बदला गेम कोट पीस कहियेगा तो कोट पीस है, ट्वेंटी एट, ट्वेंटी नाइन आज हम आप लोगों को पढ़ायेंगे देखिये। संसार जैसा ही प्लेयिंग कार्ड भी है। जैसा प्लेयिंग कार्ड हमारे-आपके लिये है। वैसे ही ये संसार भगवान् के लिये है। जैसे प्लेयिंग कार्ड हम लोगों का खेलने का चीज है। वैसे संसार जो है भगवान् का खेलने का चीज है। भगवान् ने अपने मौज-मस्ती के लिये संसार बनाया है। झूठ-मूठ में आप लोग परेशान है। संसार के रहस्य को जानिये। भगवान् के शरण में होइये। आप भी उसका मजा लीजिये।

४४१. जिज्ञासु:- तो परमात्मा भी मौज-मस्ती चाहता है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सारे मौज मस्ती की खान है। मौज-मस्ती चाहता नहीं है। कौन देगा चाहेगा तो? वो तो है ही है मौज-मस्ती का खान।

४४२. जिज्ञासु:- हम उसी से पैदा हैं तो दु:खी क्यों हो गए?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- फुटबाल लाया जाता है खेलने के लिये। वो लाखों लोग आनन्द पाते हैं कब? जब भडांग से लात मरा जाता है। फुटबाल बेचारा तड़पता है आह ! हमको मजा आता है कि मारा तो सेन्टर लाइन पार कर गया। बेचारा फुटबाल तो तड़प रहा है और मजा आ रहा है देखने वालों को। क्रिकेट मैच होता है। जब सचिन सहवाग का छक्का लगता है, धोनी जब चौका-छक्का जब धुनता है तो लाखों-करोड़ो लोग झूम जाते हैं। बेचारे बाल जी बाल, वो तड़ाम-भड़ाम चिल्ला रहा है किसी को दया नहीं आ रही है। किसी को दया नहीं आ रही है बेचारे बाल पर। किसी को दया नहीं आ रही है बेचारे बल्ला पर। बेचारे तड़ाम-तड़ाम बोलता है बेचारा खूब मजा लेते हैं। वाह ! मरा छक्का, गया पार। मारा चौका गया तो भइया ! भगवान् मजा लेता है खेलकर के। आप हम बाल बने हैं इसलिये तड़ाम-धड़ाम कर रहे हैं, तड़प रहे हैं। खिलाड़ी बन जाइये मजा लीजिये।

४४३. जिज्ञासु:- हम यहाँ तड़प रहे हैं वो वहाँ मौज-मस्ती ले रहा है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सवाल ये है इसलिये तड़प रहे हैं ये मौज-मस्ती ही तो आपको तड़पा रहा है। मौज-मस्ती लेना था भगवान् के शरण में लेकर और मौज मस्ती लेने लगे चोर-बेईमान बनकर। मेरा-मेरा कहकर। मैं-मेरा बनकर। तो चोर-बेईमान तडपेंगे नहीं तो आनन्द-मस्ती लेंगे क्या? मौज-मस्ती आपके लिये भी बना था। लेकिन भगवान् के शरण में रह चलकर। इसका मौज-मस्ती मिलता। लेकिन मैं-मेरा कायम करके चोर-बेईमान बनकर मौज-मस्ती लेंगे। ये डाकू लोग जो हैं धन लुटते हैं। घर का दाल-रोटी नहीं खाने को मिलता है। रोटी-सब्जी नहीं खाने को मिलता है। वो जंगल-झाड़ में रहते हैं। पुलिस उनको घर की रोटी खाने देगी? जो मेहनत करने वाला घर की रोटी खाता है। चैन से सोता है। सिपाही जी, इंस्पेक्टर साहब आते हैं। तो आदर-सम्मान से उनको भी एक कप चाय पिलाता है। लेकिन इंस्पेक्टर साहब डाकू बदमाश जी लोग इंस्पेक्टर साहब को चाय पिलायेगा। घर का दाल-रोटी खायेगा क्या? तो जब चोर-बेईमान बने आप लोग और मौज-मस्ती मिले और तड़पन न मिलेगा। भगवान् के शरण में रहिए खिलाड़ी बनिये नहीं तो दर्शक बनिये। दर्शक बनिये। मार चौका-छक्का देखकर के झूम जाइये। कम से कम नहीं खिलाड़ी तो दर्शक तो बनिये। दर्शक बनिये। मार चौका-छक्का देखकर के झूम जाइये। कम से कम नहीं खिलाड़ी तो दर्शक तो बनिये। आप जब बाल ही बल्ला बनेंगे तो तड़ाम-धड़ाम तडपेंगे नहीं तो और क्या करेंगे?
कल भी मौका मिलेगा। अभी जब तक यहाँ रहूँगा, उन्तीस तारीख तक तो शंका-समाधान करूँगा। तीस तारीख से भी रोज एक बार तीन से पाँच बजे शंका-समाधान करूँगा। जब तक मैं यहाँ रहूँगा।

४४४. जिज्ञासु:- स्वामी जी ! एक शंका हमें यह है हम हर जगह हम चौरासी-चौरासी सुनते हैं, पचासी क्यों नहीं?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- इसलिये कि साँचा, फैक्ट्री में माल तो खूब बनता है लेकिन साँचा गिनती का रहता है। ये चौरासी लाख साँचा है। सृष्टि का, प्रकृति का। इतने प्रकार की वस्तुयें ढाली जाती है। जो जन्म कहलाती है। साँचा गिनती का होता है। वस्तु भले अनगिनत हो जाय। वो साँचा है चौरासी का। सृष्टि का।

४४५. जिज्ञासु:- जब मैं परमात्मा के पास था आदि में तो पहले मैं निराकार मय रहा होगा। बिना कर्म के हमें शरीर कैसे मिल गई?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- इसलिये कि मौज मस्ती लेने के लिये। जब मैं खिलाड़ी नहीं था कोई  बाल और बैट नहीं था। जब खिलाड़ी बना, निराकार मेरे खेल भावना थी। जब खिलाड़ी बन गया। तो साकार हमको बैट बेट-बल्ला चाहिए बाल-बैट चाहिए। तो जहाँ बनता है बनवाकर के खेलने लगे। वैसे तो भगवान् निराकार था तो वो तो सच्चिदानन्द में डूबा ही था। थोड़ा साकार का मजा लेना हुआ तो बना लिया खेल रहा है। सृष्टि उसी की बनाई हुई है, उसी की है, उसी में है। बाहर कहाँ है?

४४६. जिज्ञासु:- स्वामी जी ! जब गर्मी लगती है तो ठण्ड की जरूरत महसूस होती है। तो मतलब ठण्ड लगती है तो गर्म की। इसका मतलब परमात्मा को पहले दु:ख हुआ होगा तो उसको मौज-मस्ती सूझी होगी। अब हम क्या करें कि मौज-मस्ती करें। अगर दु:ख न होता तो मौज-मस्ती की तलाश न करता। इसका मतलब है किउसके पास भी दु:ख रहा होगा और मौज-मस्ती के लिए हम लोगों को भेज दिया।    

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अब एक बात और है बोलो परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। ये आपका व्यक्तिगत दोष नहीं है। जिस लक्षण में होता है उसको वैसा ही दिखाई देता है। जाके रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तंह तैसी जिसकी जैसी भावना है, उसका ही वैसा अर्थ है। अभी आप दु:ख-सुख का अर्थ भी नहीं समझते। दु:ख-सुख शरीर और संसार के बीच और आगे बढ़कर जीव तक होता है। ईश्वर पर दु:ख-सुख लागू नहीं होता है। परमेश्वर पर कैसे जाएगा? दु:ख-सुख शब्द की पहुँच जीव तक है। ईश्वर ही, आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म-शिव तक ही दु:ख-सुख नहीं पहुँच पाता, परमात्मा-परमेश्वर के पास कहाँ से पहुँचेगा?

४४७. जिज्ञासु:- स्वामी जी ! एक शंका हमें ये होती है कि कई जगह हमने पढ़ा है मोको कहाँ ढूढें बंदे मैं तो तेरे पासअब पास का मतलब हम ये नहीं समझते कि कितना पास, नजदीक?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- इसलिये नहीं समझते कि जीण  जीर्णाति न पाइये गहरे पानी पैठ। मैं बैरी ढूढ़ों लगी, रही किनारे बैठ समुद्र के किनारे बैठने वाले को रतन नहीं मिलता है। जो समुद्र में घुसता है उसको रतन मिलता है। तो पास तो आप लोग पढ़ लिया, लेकिन भीतर पैठ नहीं पढ़ा। इसलिये यानी।
बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। और कोई भाई बन्धु।

४४८. जिज्ञासु:- स्वामी के चरणों में सादर प्रणाम। हम ये जानना चाहते हैं कि मनुष्य इस परमपिता परमेश्वर के ड्रामा रूपी संसार के स्टेज का एक पात्र ही है या इसके जन्म का और कुछ उद्देश्य और होगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- सवाल ये है जब परमात्मा के विधान में रह चल रहा है, तब तक ड्रामा का एक पात्र है। यदि उसके विधान में नहीं चल रहा है। तब तो माया के विधान का वो पात्र है। जिसमें चौरासी लाख का चक्कर है।

जिज्ञासु:- अगर महाराज जी यह संसार जो है परमपिता परमेश्वर का बनाया हुआ है। बिना उसके आदेश से हवा तक नहीं चलती। तो मनुष्य यहाँ जो कुछ भी चलता है वो अपने से ही करता है या परमपिता के इशारे से उचित अनुचित करता है?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। सरकार के ही पुलिस भी है, सरकार के ही जजेज भी है। वो पुलिस है ही है अपराधियों को ठीक करने के लिये। तो मजिस्ट्रेट और जज की क्या जरूरत? इसलिये कि कहीं पुलिस प्रशासन कहीं जान बूझकर के गलती तो नहीं कर रहा है। प्रशासन पुलिस जो है ज़ोर जुल्म तो नहीं कर रहा है। अपने प्रभाव का दुरुपयोग तो नहीं कर रहा है तो प्राथमिक स्तर पर मजिस्ट्रेट साहब जाँच करेंगे। क्यों? मजिस्ट्रेट साहब धर्म के अधिकारी है। यदि नागरिक अपराधी होगी तो नागरिक को दण्ड देंगे, उनकी पुलिस भी यदि अपराधी होगी तो पुलिस को भी दंडित करेंगे। लेकिन मजिस्ट्रेट साहब पूर्णरूपेण जो है न्यायकर्ता नहीं है। वो आधा प्रशासक है आधा न्यायकर्ता है। इसलिये उसको पूर्णरूपेण न्याय करने का अधिकार नहीं है। इसलिये तीसरा जजेज बनाया गया है बिडीशियेल बनायी गयी। उनका केवल है कि नागरिक हमारा सुरक्षित है कि नहीं। मेरे नागरिक पर कोई सरकारी मशीनरी कोई जुल्म तो नहीं कर रही है। अथवा नागरिक ही तो जुल्मी नहीं है। ये वो जाँच करेगा और जाँच करने के बाद जो अपराधी होगा, दंडित करेगा। यही सुप्रीम कोर्ट ने गवर्नर साहब बूटा सिंह जी को बिहार के मुँह पर कालिख पोता थू-थू किया है। ये तो गवर्नर थे उन पर तो कानून लागू नहीं होता है। गवर्नर का केवल प्रधानमंत्री ही है, यानी इनको हटा सकता है। राष्ट्रपति ही हटा सकता है और कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता गवर्नर का। गवर्नर पर कोई कानून लागू ही नहीं होगा। ये सुप्रीम कोर्ट गवर्नर को हटा नहीं सकती है। केवल प्रधानमन्त्री ही ऐसा है जो सिफारिश करके राष्ट्रपति को गवर्नर का हटवा सकता है और किसी में कोई दम नहीं है गवर्नर का कुछ बिगाड़ने के लिये। फिर भी दबाव पड़ना शुरू हो गया। तो जब सुप्रीम कोर्ट जिसके मुँह पर कालिख पोत रही है। वो गवर्नर कैसे रह सकता है इतने बड़े संवैधानिक पद पर और उसे हटाना पड़ेगा, भागना पड़ेगा। मनमोहन सिंह को मजबूर होकर उतरना पड़ेगा मैदान में। जब कि वही रखें है। वो रखे हैं सोनोया मनमोहन को काहे रखे। मनमोहन का मालिकन हो जाय न तो सोनिया को जेल में डाल दे। लेकिन मन मोहन तो सोनिया के मोहर हैं, सील मोहर हैं, रबर-स्टाम्प हैं। वो जिसको चाहेगी सोनिया उतारेगी। तो इस तरह से जो है यानी सब कुछ के बावजूद शासन सत्ता जगह-जगह व्यवस्था बनाया गया है। पुलिस, मजिस्ट्रेट, जजेज। तीन विभाग भी शासन जो है चल रहा है। सरकार चल रही है। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका। तो विधायिका तो सीधे ही कानून बनाके रख दिया। अब कार्यपालिका न्यायपालिका सीधे है। तो पुलिस और मजिस्ट्रेट कार्यपालिका के हैं और जजेज न्यायपालिका के है। तो ये सभी व्यवस्था है। परमेश्वर वाला भी एक व्यवस्था है। परमेश्वर वाला भी एक व्यवस्था है। प्रकृति का भी एक व्यवस्था है उसी अनुसार सब हो चल रहा है।

४४९. जिज्ञासु:- आपको मैं प्रणाम करता हूँ। जो आपने लिख कर दिये वो सब सही है और उनसे हमें शान्ति मिली है। लेकिन हम ये शान्ति मिली क्षण भर के लिये मिली। हम किसी चीज का अनुभव करते हैं कि क्षणभंगुर सोचने में भी मिल जाती है या फिर सोचने में मिलती है तो ऐसा कोई उपाय नहीं है कि जो बनी रहे। ये कुछ देर के लिये बनी रहे। पाँच मिनट एक सेकण्ड के लिये आई चली  जाती है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलो परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। अंतिम शान्ति ज्ञानमय स्थिति में होते हुये भगवद् शरण में बने-बनाये रखा जाय ईमान, संयम से, वो शाश्वत् शान्ति होती है, शाश्वत् आनन्द होता है। वो सच्चिदानन्द भी होता है। ज्ञानमय स्थिति में होते रहते हुये ईमान और संयम के साथ भगवद् शरण में बना रहा जाय। ईमान, संयम अनिवार्य है। संयम भंग होगा दण्ड के पात्र हो जायेंगे। दण्ड के पात्र हो जायेंगे कष्ट मिलेगा। तो संयम पूर्वक यदि ईमान से ज्ञान प्राप्त करते हुये भगवद् शरण में रह लिया तो सदा-सर्वदा के लिये सब सृष्टि रहेगी तब तक के लिये आत्मशान्ति आनन्द मिलेगी। तीन प्रकार का भौतिक स्तर पर ज्ञान होती है। वो क्षणिक होता है। पहला स्त्री प्रसंग के पश्चात्, थोड़े देर के लिये जब क्षरण हो जाता है तो जो विचारशील प्राणी होते हैं तो उनके अंदर ज्ञान खिलता है। इतना ही के लिये सारा अस्तित्त्व नष्ट किया जाता है। तो ये ज्ञान क्षणिक होता है। दूसरा ज्ञान होता है श्मशान पर चिता फूंकते समय। आप फूंके हो तो याद कीजियेगा। जब वहाँ चिता सजाया जाता है। वहाँ चारों ओर खड़े लोग होते हैं। उनके अन्दर, सब के अन्दर ज्ञान खिल जाता है। अरे ! ये तो सबकी यही गति हो रही है। क्या ये साथ लेकर जा रहे हैं। मिट्टी, बालू तो साथ जा रहा है। सब पाप-कुकर्म किया जाता है मिल-बांट कर खा लेती हैं और आज अकेले तो जा रहे हैं हाथ पसारे हुये। क्या लेकर के जा रहे हैं? क्या बैर-विरोध इस दुनिया में करना है? कुल ज्ञान खिलता है जब तक चिता जलता है। उस समय अपवित्र हो गए। क्यों कि ज्ञान खिला है। नहाने जाते हैं पवित्र के लिये, क्या धो रहे हैं? ज्ञान। आएँगे घर उर में तो आप अपवित्र हैं क्योंकि ज्ञान खिला था मिर्चा कटाया जायेगा। हाथ पैर धुलाया जायेगा। मिर्चा कटाया जायेगा। क्या बात है भाई? सूखा पण्डित भागे ज्ञान। ज्ञानवा रहेगा तो परिवारिकता रहने नहीं दी जायेगी। पाप-कुकर्म करबे नहीं करेगा। लूट-पाट करबे नहीं करेगा। तो परिवार चलेगा कैसे? तो ज्ञान को पाप घोषित करके ये गृहस्थ पतित लोग उभरे हुये ज्ञान को नष्ट करते हैं। क्योंकि भोग-व्यसन, भोगी-व्यसनी लोग भोग-व्यसन में बने-बनाये रहें। ये भी ज्ञान क्षणिक होता है शमशान वाला। तीसरा ज्ञान खिलता है सत्संग में। आप यहाँ  आये हैं ज्ञान खिला खूब बढ़िया खिला।
गंगोत्री के स्नान से भी पवित्रतम् क्योंकि न हि ज्ञानेन सदृश पवित्रमहि विद्यते। भगवान् कृष्ण ने गीता के अध्याय चार के एक्तीसवें श्लोक में कहा है। ज्ञान के समान पवित्र करने वाला ब्रह्माण्ड में और कहीं कोई और चीज नहीं है। तो सत्संग में आप बैठते हैं तो सत्संग में ज्ञान चर्चा होगी। ज्ञानचर्चा होगी तो आपमें खूब बढ़िया ज्ञान खिलेगा। शान्ति मिलेगी आनन्द की अनुभूति होगी। लेकिन जैसे ही घर की तरफ जायेंगे माया क्षेत्र में, वैसे ही माया दबोच लेगी। देहात में काई वाला वाला पोखर में हम लोग शौच पखाना जाकर पानी छूने जाते है तो काई टारता है और पनिया (पानी) लेकर के फिर पनिया (पानी) लेने आता है तो फिर काई वहाँ पर रहती है। वैसे ही जब आप लोग सत्संग में आते हैं तो कइया (काई) तो हटती है माया तो हटती है, ज्ञान खिलता है। लेकिन फिर आप उधरे ही मुड़ते हैं तो फिर कइया (काई) छा जाती है। तो शान्ति आनन्द क्षणिक तो हो ही जायेगा। सत्संग के बाद शंका-समाधान के बाद ज्ञान से गुजरें ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् यदि साक्षात् भगवान् मिल ही रहे हैं। तो अपने जिन्दगी को उनकी शरण में डाल दीजिये। जाहे विधि राखे राम वाहे विधि रहिए, विधि के विधान राम हानि-लाभ सहिए। फिर यही शान्ति आनन्द फॉर एवर के लिये हो जायेगा। सदा के लिये हो जायेगा। लेकिन ईमान संयम अनिवार्य होगा। संयम और ईमान दोनों अनिवार्य होगा। संयम भंग हुआ, ईमान टूटा दण्ड के पात्र बनेंगे तो कष्ट पीड़ा मिलेगा। संयमित रहें दण्ड की आवश्यकता? संयमित रहने वाले के लिये अनुशासन शब्द ही नहीं है। संयमित रहने वाले के लिये अनुशासन शब्द ही नहीं है। संयमित भंग वाले के लिये दण्ड अनिवार्य विधान है। दण्ड के सिवाय दूसरा कोई उनको कायम ही नहीं रख पायेगा। सच्चाई को, ईमान को कायम ही नहीं रख पायेगा। भगवान् को भी दण्ड देना होता है। भगवान् भी दण्ड देता है। अपने भक्त-सेवकों को भगवान् भी दण्ड देता रहता है ताकि भ्रष्ट बेईमान न बनें। ईमान और संयम से युक्त रहे।

४५०. जिज्ञासु:- स्वामी जी बेईमान तो हम जन्मों-जन्मों से हैं ?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- जब जन्म-जन्म से आप बेईमान, चोर बने तो कमी सता रहा था, अभाव सता रहा था। भगवान् कोई कमी-अभाव नहीं करता है। इसीलिए भ्रष्ट, बेईमान नहीं देखना चाहता। सारी पूर्ति करता है। नमक से लेकर के अमर लोक तक की जिम्मेदारी लेता है। फिर आप वहाँ भ्रष्ट, बेईमान क्यों बनेंगे? जब आपकी सारी पूर्ति करने को तैयार है। बुराई-विकृति करने न देना, अच्छाई-सुकृति, सत्कीर्ति सब पूरा करेगा। किस बात के लिये आपको बेईमान, भ्रष्ट बनना है।

४५१. जिज्ञासु:- तो फिर एक हमेशा मतलब ध्यान क्यों नहीं रहता?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- इसलिये कि ध्यान एक नहीं रहता कि आप अनेकानेक में बैठे हुये हैं। एक आयेगा कैसे? जब एक के पीछे अपने को करदें तब न एक होगा। आप बैठे हैं अनेकानेक में, कोई पिताजी कहने वाला है तो कोई चाचाजी कहने वाला है तो कोई फूफा जी कहने वाला है तो कोई मामाजी कहने वाला है तो कोई मौसा जी कहने वाला है तो कोई साला जी कहने वाला है तो कोई बहनोई जी कहने वाला है तो कोई चाचाजी कहने वाला है तो कोई भतीजा जी कहने वाला है तो कोई बेटा कहने वाला है तो कोई बाबा जी कहने वाला है। आप रह रहे हैं अनेक में ध्यान कैसे एक हो?
बोलो परमप्रभु परमेश्वर की जय sss

४५२. जिज्ञासु:- स्वामी जी आप ऐसा उपाय बतायें कि आपकी कृपा दृष्टि से इन सारी चीजों से परे हटकर और आदमी भगवद्मय हो जाय यहीं मैं आपसे रिक्वेस्ट (प्रार्थना) करता हूँ।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलो परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। मैं आप लोगों से एक निवेदन करूँगा। यह देश गुलाम था सारे लोग त्रसित थे, सारा ज़ोर-जुल्म बढ़ रहा था, यहाँ का सारा धन-सम्पदा ब्रिटेन जा रहा था। एक सुई सुई तक भी प्रयोग के लिये ब्रिटेन से आ रहा था। यहाँ कुछ नहीं बनता था। यहाँ स्कूल विद्यालय भी नहीं खोले जा रहे थे। लोग शिक्षित हो जायेंगे, समझदार हो जायेंगे। इसमें कुछ लोगो को मंगल पाण्डे जैसे लोगों को विचार आया। वो सोचे कि ये काले वो गोरे हम लोगों पर शासन करके सब हम लोगों का जहाँ युद्ध होता था, आगे हिंदुस्तानी फौज लड़ती थी। उसी से ब्रिटानी होते थे या हिन्दुस्तानी या तो आगे लड़के मरे, आगे लड़े पीछे भागोगे तो ब्रिटानी सेना गोली मार दे। ये जुल्म हिन्दुस्तानी सैनिकों के साथ होता था। देखने वालों का दिल दहल उठा। मंगल पांडे जैसा कोई व्यक्ति निकला।

४५३. जिज्ञासु:- संतों में आपसी टकराव होगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- हैं.......का होगा आगे। अरे ! जो कपटी मुनि होगा, कालनेमी होगा वो धरती पर रहेंगे? सबको बटिये में निकालने में तो है अधिकतर। अब आगे देखिए ये भी एक जनतंत्र है, कानून का राज्य है। एक सीमा में रहकर के बातें करिये। हम भी एक सीमा में रहकर ही जवाब देंगे।

४५४. जिज्ञासु:- इनका विनाश कैसे होगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- भगवान् को जब जैसा जरूरत पड़ेगा, करेगा। करा रहा है, प्रकृति आगे आ रही है। ये आतंकवादी लोग 20 वर्ष से भारत को तबाह किये थे। ये बेईमान जो बुश अमेरिका वाला जो है, भारत को दबाने के लिये पाकिस्तान को उभार रहा था आतंकवाद को, सबसे बड़ा आतंकवादी तो अमेरिका है, रूस है। आतंकवाद को पीछे से सह दे रहा है, आगे से हल्ला कर रहा है। ये शैतान तो खुद आतंकवादी है, रूस है। तो कुल मिलाकर के जो है, सब भारत को दबाने के लिये एक कर कार्य कर रहा था। भारत तबाह था, कोई उपाय नहीं दे रहा था, पाकिस्तान से युद्ध छेड़ें तो अमेरिका, ईरान सामने आ जाये, और विश्व युद्ध हो जाय क्योंकि विश्व भी आ जायेगा भारत के साथ। भारत के दोस्त-मित्र भी भारत के साथ हो जायेंगे। भारत का युद्ध माने विश्व युद्ध। भारत से जो कोई युद्ध छेड़ा और भारत ने युद्ध घोषित किया तो विश्व युद्ध होगा ही होगा। अब भारत अकेला नहीं रह गया है। भारत के पीछे सैकड़ों देश है। अमेरिका से कम संख्या विश्व में भारत के पीछे कम नहीं है।

४५५. जिज्ञासु:- तो विश्व युद्ध होगा?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- होगा कि नहीं होगा ये मेरा विषय नहीं है। मेरा ये विषय है कि भारत विश्व का शासक बनेगा और इसके आगे-पीछे क्या होगा? अब मैं नहीं बोलूंगा। अब इसको आगे थोड़ा गोपनीय रहने दीजिये। बोलो परमप्रभु परमेश्वर की जय sss
भारत विश्व का शासक बनेगा, इसको ब्रह्माण्ड की कोई आसुरी शक्ति रोक नहीं सकती।

४५६. जिज्ञासु:- आपका स्टेटमेंट ये इंडिकेट करता है, वो करता ही नहीं अटल सत्य भी है कि जो कुछ भी हम करते हैं ये आलरेडी लिखित है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- बोलो परमप्रभु परमेश्वर की जय sss। ऐ भइया ! सब कुछ लिखित ही नहीं होता है। कभी-कभी कुछ ऐसा भी होने लगता है। जो अलिखित भी है। लेकिन अनहोनी होवे नहीं, होनी हो सो होय। अनहोनी होवे नहीं, होनी हो सो होय, चिंता वाके कीजिये जो अनहोनी होय। अनहोनी होवें नहीं, होनी हो सो होय। अरे ! नहीं होना है वो तो नहीं होना है, जो होना है वो तो होना ही होना है। इसमें क्या सोचना है? सोचना तो वहाँ है जो नहीं होने वाला था, हो रहा है, होने लगे। सोचना तो तब है, जब नहीं होने वाला होने लगे। नहीं होने वाला भी हो सकता है, होता है।

४५७. जिज्ञासु:- यही स्टेटमेंट सही सत्यता को क्लीयर करता है। रावण के पास दोनों आप्शन थे, वो जानता था कि मुझे लड़ने से भी फायदा है और नहीं लड़ता हूँ, तब भी मुझे फायदा है।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- नहीं, नहीं। लड़ने में फायदा किसी को होता है, ऐसा तो है ही नहीं। लड़ने में किसी को फायदा होता है ऐसा तो है ही नहीं। लड़ाई किसी को लाभ नहीं देती है। परेशानी तो हर किसी को देती है। भगवान् चूँकि सफाया करने आता ही है। भगवान् के कार्यक्रमों में दुष्ट-दलन एक कार्यक्रम है। सज्जन सरंक्षण, दुष्ट-दलन एक कार्यक्रम है, धर्म-संस्थापन सहित। इसलिए भगवान् का एक खेल है, ड्रामा है। ड्रामा को सुन्दर बनाने के लिए नायकत्व के साथ-साथ खलनायकत्व अनिवार्य है। भगवान् तो युद्ध भी करता है। इसलिए भगवान् अपने को हर क्षण दिखलता है समाज में कि देखो भाई मैं युद्ध नहीं चाहता, अंगद को भेजकर के दिखलाया कि प्रस्ताव रखकर के कि सर्व सम्मान सीता को वापस कर दे यानी उसका कल्याण भी होगा और शान्ति भी हो जायेगी। हम सीता को वापस लेकर जायेंगे, जानते थे कि सीता को वापस नहीं करेगा। लेकिन समाज को बोलने का मौका नहीं दिया, अंगद को भेजकर। युद्ध सुनिश्चित था। कौरवों आदि की बैठके हो रही थी युद्ध की तैयारी में। पाण्डव के यहाँ भी बैठक हो रहा था, द्रोपदी के पिताजी राजा द्रुपद के यहाँ। बैठक हो रहा था। सभी पाण्डव बैठे थे उसमें। पाण्डव से सम्बंधित जितने भी रिश्तेदार संबंधी थे वो भी बैठे थे। वहाँ भगवान् कृष्ण भी बैठे थे। एक सभा सभा हो रहा था कि अब क्या हो? युद्ध तो सुनिश्चित हो गया। भगवान् कृष्ण कहे कि ठीक युद्ध सुनिश्चित हो गया। तो सबकी बारी-बारी अपना-अपना राय देने लगे सब लोग। अब उस सब लोगों के राय में भगवान् कृष्ण का भी मौका आया, समय आया। तो कहे कि युद्ध तो ठीक ही है होगा, होगा तो होगा। लेकिन एक बार शान्तिदूत भेजना चाहिए। शान्ति संदेश.........एक और मौका दुर्योधन को देना चाहिए। अब सवाल है शान्तिदूत बनकर दुर्योधन के यहाँ जायेगा कौन? कहे कि दुर्योधन तो हर किसी को जो है युद्ध, युद्ध चिल्ला रहा है। कृष्ण को कहेगा भी तो कौन कहेगा? जब कोई नहीं तैयार हुआ शान्तिदूत बनकर जाने के लिए दुर्योधन के यहाँ। तो भगवान् कृष्ण कहे कि मैं ही जा रहा हूँ। शान्तिदूत बनकर के दुर्योधन के सभा में मैं जाऊँगा। यदि शान्ति हो जाती है तो काहे के लिए ये सब करना है तो भगवान् कृष्ण खुद शान्तिदूत बनकर पाण्डव के, अर्जुन की कहने की हिम्मत नहीं थी भगवान् कृष्ण से कहने की कि आप शान्तिदूत  बनकर जाइये। सब बड़े भइया थे युधिष्ठिर भी, बड़े भइया थे। लेकिन उनके श्रेष्ठत्त्व को वे लोग महशूस कर रहे थे, मंजूर कर रहे थे। तो इसलिए जो है वो आकर तैयार हुये गए और वहाँ जाकर के दुर्योधन के सभा में जब समझाने लगे।
देखिए दूत एक ऐसा चीज है। कहावत है लोग कहते हैं क्या सही है क्या झूठ है? डा॰ लोग जाने। दूध सर्वोत्तम पेय पदार्थ है, दूध से शरीर में ताकत मिलता है, दूध शरीर का सहायक होता है। लेकिन साँप को दूध पिलाइयेगा तो जहर बनेगा। दूध पिलाते जाइये मौका पायेगा तो किसी दिन काटेगा। तो उसी तरह से दुष्ट लोगों को अच्छा संदेश दीजिये, अच्छा उपदेश दीजिये तो उसको अच्छा नहीं लगता है, काटता है। वो और रुद्र होता है, वो समझता है कि ये कमजोर पड़ रहा है इसलिए शान्ति-शान्ति चिल्ला रहा है। वहाँ भगवान् कृष्ण को ही बाँधने का, गिरफ्तार करने का आदेश कर दिया, भरी सभा में। कहे कि गिरफ्तारी। अच्छा भाई करो। आगे की कहानी थोड़ी लम्बी है।
इस स्तर पर दुर्योधन उतर गया। तो भगवान् शान्ति चाहते हैं ये तो स्पष्ट प्रमाण है। वैसे भगवान् तो सफाया करता ही है। फिर सोचते हैं शान्ति से आ जाय प्रकृति कर-करा ले, वो तो और बढ़िया है। ऐसा तो प्रकृति करना शुरू कर दिया है। इस कल्कि का रिकार्ड होगा जो इस समय सुनामी आया है, सुनामी आया है। तो फिर जो है अमेरिका में कटरीना आया है। तो बीटा आया है, तहस-नहस उनको बर्बाद करने के लिए। जो बर्बादी इस साल हुई है प्रकृति के द्वारा, समुद्र के द्वारा, वो बर्बादी शायद कभी प्रलय छोड़कर के धरती पर हुआ हो। आँख फैलाकर देख लीजिए। यानी सुनामी, कटरीना, विल्मा और भी कोनो-कोनो हुआ है और सब तबाह करके छोड़ दिया है। ये बेईमान, चोर बुश जो है, इराक़ के तेल को अपनाने के लिये, कब्जा करने के लिये ये आक्रमण जो किया है। अमेरिका का तेल विभाग ध्वस्त कर दिया, विल्मा ने, कटरीना ने। तेल क्षेत्र ही नष्ट कर दिया। ये आतंकवादी शैतान लोग जो मुज्जफराबाद जो, मुज्जफराबाद न......मुज्जफराबाद में बैठकर के जो भारत को तबाह कर रहे थे। ये भारत को पशोपेश में था। यह जो बम गिराते हैं तो पाकिस्तान से युद्ध छिड़ जायेगा। अमेरिका उतरेगा, रूस उतरेगा, विश्व युद्ध हो जायेगा। ये सब देखते हुये युद्ध बचाने में सब झेल रहा था। कश्मीर में नागरिक मारे जा रहे थे। ये सब आतंकवादी, ऐसा आया है प्रकृति का भूकंप सारे आतंकवादी लोगों का सारा शिविर दो मिनट में नष्ट कर दिया, ध्वस्त कर दिया। सारा शिविर ही इन लोगों ने ध्वस्त कर दिया। 80 प्रतिशत से ऊपर मुजफ्फराबाद शहर ही नष्ट हो गया। वो बसाने से इतना जल्दी बसेगा? तो प्रकृति तो जहाँ-जहाँ पा रही है, अपना कुछ करना शुरू कर दी है। प्रकृति निपटा देगी अधिक बचे-खुचे रहेंगे थोड़ा रह गया तो परमेश्वर देख लेगा। अभी तो प्रकृति ही शुरू कर दी अपना, बकीया जो बचेगा तो भगवान् बचा-खुचा सफाया कर देगा। बोलिए परमप्रभु परमेश्वर की जय sss

४५८. जिज्ञासु:- स्वामी जी ! जब परम गॉड को ये मंजूर है, ऐसा होना है वो जानता है तो मनुष्य की क्या औकात?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- है ही ऐसा और वही जो शैतान होते हैं, उनको पहले भगवान् समझ में नहीं आते हैं, मरते समय समझ में आते हैं। जितने नेतवा है सब, वो मंच पर........मैं धर्म वरम नहीं मानता । ये तो धर्म तो एक अफीम है, अफीम कहते हैं और जब कोनो मरता-कटाता है न तो रेडियो स्टेशन रोने लगता है। पूरे इंडिया का चैनल रोने लगता है, तब कबीर का पद, तब मीरा बाई का पद, तब नानक देव का पद इन लोगों को खूब याद आने लगता है। वो रीडियो बेचारा पद गाने लगता है मीरा बाई का पद। तब इन सबों को धर्म समझ में आता है। जब तक ये शैतान मराते-कटाते नहीं हैं, तब तक इन लोगों को समझ में ही नहीं आता है। इन सभी को लास्ट में समझ में आता है ज्ञानी भक्त श्रद्धालु।

४५९. जिज्ञासु:- इट मीन्स (इसका मतलब) रावण ने बहुत अच्छा कार्य किया?

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- अब जो हो, रावण ने अच्छा किया कि बुरा किया। आप भी जानते हैं सब सुने हुये हैं, सब देखे हुये हैं। आपको अच्छा लग रहा है, तो इसका अर्थ है आप...........

४६०. जिज्ञासु:- दोनों आप्शन हैं इसमें। अगर वह एकाकार हो जाता, भगवान् राम में, परमगॉड में। तो उसका भी कल्याण हो जाता।

सन्त ज्ञानेश्वर जी:- ये तो चेला जी लोगों को सोचना चाहिए। गुरुजी लोगों में फंस करके बर्बाद-विनाश न हो रावण के तरह से। रावण जैसा भक्त शंकर को कोई और हुआ है क्या? शंकर जी रक्षा करने एक बार रावण की गए। एक बार भी रावण को बुलाकर के शंकर जी ने नहीं कहा कि हमारे प्रभु हैं, हमारे परमप्रभु हैं, हमारे पिता हैं, आप शरणागत हो जाओ, शरण में हो जाओ। रावण कभी शंकर जी की बात नहीं काटता। शंकर जी एक बार कहे होते कि रावण ये परमपिता हैं, ये परमप्रभु हैं, शरणागत हो जा। तो शायद हो गया होता। ये गुरुजी लोग रक्षा करेंगे, जब चेला जी लोग जाने लगेंगे अपने गति में, ये गुरुजी लोग बचायेंगे क्या? कोई नहीं बचायेगा। सब किनार हो जायेगा। भगवान् जी के यहाँ लगे भागकर के आने, वशिष्ठ जी अपने भागकर के राम जी की शरण में आये, अपने किसी चेला को भी लेने गया क्या? अपने हाथ जोड़कर करके चरण भक्ति माँग लिये। कोनो चेला को भेजे क्या? जब ये गुरुवा देखेंगे सब, जब मान्यता मिलना शुरू होगा तो भाग-भाग कर अपने यहाँ आयेंगे सब। चेला लोग जाये पड़े रहे जहन्नुम में। ये स्थिति है। पिछला रिकार्ड है, सामने देख लीजिये आप लोग मिलते ही जुलते थोड़ा अन्तर करके आगे-पीछे अगला भी होगा।

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